
Prabhat Vaibhav,Digital Desk : हिंदू धर्म में श्री कृष्ण जन्माष्टमी का बहुत ही महत्वपूर्ण स्थान है। इस दिन लोग व्रत और उपवास दोनों ही तरीकों से भगवान श्री कृष्ण का जन्मोत्सव बड़े ही उत्साह के साथ मनाते हैं। इस बार जन्माष्टमी का त्योहार 16 अगस्त को मनाया जाएगा।
इस साल जन्माष्टमी के अवसर पर कई वर्षों बाद ऐसा संयोग बना है जो अत्यंत दुर्लभ है। श्रीमद्भागवत पुराण के अनुसार भगवान श्रीकृष्ण का जन्म भाद्र कृष्ण अष्टमी तिथि, बुधवार को रोहिणी नक्षत्र एवं वृषभ राशि में मध्यरात्रि के समय हुआ था।
ज्योतिषी से जानें जन्माष्टमी की तिथि
पाल बालाजी ज्योतिष संस्थान जयपुर जोधपुर के निदेशक ज्योतिषाचार्य डॉ. अनीष व्यास ने बताया कि इस बार 2025 में यह तिथि 15 अगस्त को रात 11:49 बजे से शुरू होकर 16 अगस्त को रात 9:34 बजे तक रहेगी। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, स्मार्त संप्रदाय के लोग 15 अगस्त को जन्माष्टमी मनाएंगे, जबकि वैष्णव संप्रदाय 16 अगस्त को जन्मोत्सव मनाएंगे।
हर साल भाद्रपद माह के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को रोहिणी नक्षत्र में कृष्ण जन्माष्टमी मनाई जाती है। यह दिन श्री कृष्ण को समर्पित है। जन्माष्टमी के इस अवसर पर भगवान कृष्ण की पूजा की जाती है। ऐसा माना जाता है कि जो लोग भगवान कृष्ण की शरण में जाते हैं, उन्हें नश्वर संसार में स्वर्गीय सुख की प्राप्ति होती है।
जनमाष्टमी पर शुभ मुहूर्त
ज्योतिषाचार्य एवं कुण्डली विश्ल़ेषक डॉ. अनीष व्यास ने बताया कि इस वर्ष भगवान श्रीकृष्ण का 5252वां जन्मोत्सव है। कृष्ण जन्माष्टमी शनिवार, 16 अगस्त को मनाई जाएगी। पूजा का शुभ मुहूर्त देर रात 12:04 से 12:47 तक रहेगा। चंद्रोदय का समय रात 11:32 है और अष्टमी तिथि 15 अगस्त को रात 11:49 बजे शुरू होकर 16 अगस्त को रात 9:34 बजे समाप्त होगी।
जन्माष्टमी भोग
ज्योतिषाचार्य एवं कुण्डली विश्ल़ेषक डॉ. अनीष व्यास ने बताया कि भगवान लड्डू गोपाल को माखन-मिश्री का प्रसाद बहुत पसंद है। इस कारण से जन्माष्टमी के दिन बाल कृष्ण को माखन और मिश्री का भोग लगाएं। इसके अलावा आप केसर वाला घेवर, पेड़ा, मखाने की खीर, रबड़ी, मोहनभोग, रसगुल्ला, लड्डू आदि दे सकते हैं.
जबकि रोहिणी नक्षत्र 17 अगस्त को शाम 4:38 बजे से शुरू होगा और 18 अगस्त को सुबह 3:17 बजे समाप्त होगा। इसलिए, कई लोग सूर्योदय से लेकर रात 12 बजे तक जन्माष्टमी का व्रत रखते हैं, जबकि कई लोग अगले दिन सूर्योदय के बाद इस व्रत को तोड़ते हैं।
जन्माष्टमी पर पूजा कैसे करें?
ज्योतिषाचार्य एवं कुण्डली विश्ल़ेषक डॉ. अनीष व्यास ने बताया कि जन्माष्टमी व्रत में अष्टमी को व्रत रखकर पूजा और नवमी को व्रत की पूर्णाहुति होती है। इस व्रत से एक दिन पहले सप्तमी को हल्का और सात्विक भोजन ग्रहण करना चाहिए। व्रत वाले दिन प्रातः स्नान आदि से निवृत्त होकर सभी देवी-देवताओं को प्रणाम करें।
पूर्व या उत्तर दिशा की ओर मुख करके बैठें। हाथ में जल, फल और पुष्प लेकर व्रत का संकल्प लें। दोपहर के समय काले तिलों का जल छिड़ककर देवकीजी के लिए प्रसव कक्ष बनाएँ। अब इस प्रसव कक्ष में एक सुंदर पलंग और उस पर कलश स्थापित करें। भगवान कृष्ण और माता देवकीजी की मूर्ति या सुंदर चित्र स्थापित करें। देवकी, वसुदेव, बलदेव, नंद, यशोदा और लक्ष्मीजी का पूजन करें। यह व्रत रात्रि 12 बजे के बाद ही तोड़ा जाता है। इस व्रत में अनाज का प्रयोग नहीं किया जाता है। आप मावे की बर्फी, फल, दूध और मक्खन की खीर खा सकते हैं।