Prabhat Vaibhav,Digital Desk : कभी नक्सल हिंसा के लिए पहचाने जाने वाला इमामगंज विधानसभा क्षेत्र अब धीरे-धीरे विकास की नई कहानी लिख रहा है। जिन इलाकों में कभी दिनदहाड़े जन अदालतें लगती थीं और डर के साए में जिंदगी गुजरती थी, वहां आज चौड़ी सड़कों और आधुनिक इंफ्रास्ट्रक्चर का काम तेज़ी से आगे बढ़ रहा है।
इमामगंज और डुमरिया से होकर गुजरने वाला वाराणसी–कोलकाता ग्रीनफील्ड एक्सप्रेस-वे इस बदलाव का सबसे बड़ा प्रतीक बनकर उभरा है। दिन-रात चल रहा निर्माण कार्य सिर्फ एक सड़क नहीं, बल्कि नक्सल प्रभावित क्षेत्र में लौटते भरोसे और लोकतंत्र की मजबूती की तस्वीर पेश करता है।
यह एक्सप्रेस-वे इमामगंज अनुमंडल के छकरबंधा थाना क्षेत्र के अनरवन सलैया से शुरू होकर नौडीहा पंचायत होते हुए झारखंड की सीमा तक जाएगा। कभी यह पूरा इलाका रेड कॉरिडोर का हिस्सा था, जहां गोलियों की आवाज़ आम बात थी और ग्रामीण भय में जीते थे।
बरहा, छकरबंधा, महुलनिया जैसे पहाड़ी और जंगली इलाके लंबे समय तक भाकपा माओवादी संगठन का मजबूत गढ़ माने जाते थे। यहां नक्सलियों की समानांतर व्यवस्था चलती थी और उनके आदेश ही कानून माने जाते थे। पुलिस चौकियों पर हमले, पुल-पुलियों को नुकसान और मुठभेड़ जैसी घटनाएं आम थीं।
लेकिन समय बदला। सरकार की सख्त नीति, सुरक्षा बलों के लगातार अभियान और स्थानीय लोगों के सहयोग से हालात धीरे-धीरे नियंत्रण में आए। नक्सली संगठन अब इस क्षेत्र में कमजोर पड़ चुका है और उनके अस्तित्व पर ही सवाल खड़े हो गए हैं। बीच-बीच में हथियार और गोला-बारूद की बरामदगी यह बताती है कि सुरक्षा एजेंसियां अभी भी पूरी तरह सतर्क हैं।
जिस जमीन पर कभी लैंडमाइंस बिछाई जाती थीं, आज वहीं जेसीबी, पोकलेन और भारी मशीनें विकास का रास्ता बना रही हैं। वाराणसी–कोलकाता ग्रीनफील्ड एक्सप्रेस-वे अब उम्मीदों का एक्सप्रेस-वे बनता जा रहा है।
यह सड़क सिर्फ आवागमन का साधन नहीं होगी, बल्कि इस दुर्गम क्षेत्र को देश के बड़े आर्थिक केंद्रों से जोड़ेगी। किसानों को अपने उत्पाद बड़े बाजार तक पहुंचाने का मौका मिलेगा, व्यापार को बढ़ावा मिलेगा और जब उद्योग-धंधे आएंगे तो पलायन भी थमेगा। सबसे अहम बात यह कि स्थानीय युवाओं को अपने ही इलाके में रोजगार के अवसर मिल सकेंगे।
इमामगंज का यह बदलाव दिखाता है कि जब सुरक्षा, विकास और जनसहयोग एक साथ चलते हैं, तो सबसे कठिन हालात भी बदले जा सकते हैं।




