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श्रीनगर। उत्तराखंड के पौड़ी गढ़वाल जिले में श्रीनगर के पास स्थित धारी देवी का मंदिर प्राचीन होएं के साथ ही बेहद रहस्यमयी है। माना जाता है कि मंदिर में स्थापित धारी देवी की प्रतिमा दिन में तीन बार अपना स्वरूप बदलती है। माता की मूर्ति सुबह एक लड़की, दोपहर में महिला और दिन के आखिर यानी शाम में एक बूढ़ी औरत की तरह दिखती है। धारी देवी को कल्याणेश्वरी के नाम से भी जाना जाता है। इन्ह्ने उत्तराखंड की संरक्षक माना जाता है। उन्हें ‘चार धामों के रक्षक’ के तौर पर भी जाना जाता है।DHARI DEVI TEMPLE

मंदिर के पुजारी मंदिर से जुड़ी मान्यताओं और भ्रांतियों के बारे में बताते हुए कहते हैं कि ‘यह दक्षिण काली देवी का मंदिर है, जिन्हें गांव के नाम के कारण ‘धारी देवी’ नाम मिला।’ वे बताते हैं कि ये मंदिर द्वापर युग के सबसे पुराने शक्तिपथ श्रीनगर के धारी देवी गांव में अलकनंदा नदी के तट पर स्थित है। देवी को द्वापर युग की माता भी कहा जाता है।

पांडवों ने की थी पूजा

पुजारी ने बताया कि , ‘धारी देवी को द्वापर युग की माता के रूप में भी जाना जाता है क्योंकि इस मूर्ति को द्वापर युग के दौरान स्थापित किया गया था और पांडवों ने इसकी पूजा की थी। मान्यता है कि धारी देवी की पूजा आदि गुरु शंकराचार्य भी करते थे। बताया जाता है कि प्राचीन काल में बद्रीनाथ-केदारनाथ का रास्ता इसी मंदिर से होकर गुजरता था। श्रद्धालु ‘रक्षा कवच’ के लिए प्रार्थना करने जाते थे और देवी उनकी मनोकामना जरूर पूरी करती थी इसलिए उन्हें ‘चार धाम की रक्षक’ भी कहा जाता है। देवी को कल्याणेश्वरी भी कहा जाता है, जो लोगों की मनोकामनाएं पूरी करती हैं।’

पुजारी ने उत्तराखंड में भूस्खलन की घटनाओं और मंदिर की ऊंचाई बढ़ाने से जुड़े दावों पर भी बातचीत की और कहा दरअसल, अलकनंदा नदी का प्रवाह इसी तरफ से केदारनाथ घाटी के ऊपर से आता है। उन्होंने कहा कि लोग बाढ़ को धारी देवी मंदिर से जोड़ते हैं जबकि इसे साबित करने के लिए उनके पास कोई पुख्ता सबूत नहीं है। मूर्तियों को सुरक्षित रखने के लिए यहां इन्हें यहां स्थापित किया गया था।

पुजारी ने बताया कि कई लोग केदारनाथ आपदा को देवी मंदिर से जोड़ते हैं और उसे माता का प्रकोप मानते हैं लेकिन यह एक गलत धारणा है। लोगों का मानना है कि मंदिर विस्थापन की वजह से अलकनंदा नदी में पानी बढ़ने लगा था लेकिन सही तथ्य यह है कि जब तक हमने मंदिर से मूर्तियों को हटाया, तब तक बाढ़ के साथ-साथ भूस्खलन भी गांव में आ चुका था। प्राचीन मंदिर जलमग्न हो गया था।’

गौरतलब है कि साल 2013 में अलकनंदा हाइड्रो इलेक्ट्रिक पावर प्लांट (एएचईपीपी) के निर्माण के दौरान धारी देवी का मंदिर जलमग्न हो गया था। ऐसे में स्थानीय लोगों का मानना है कि धारी देवी के क्रोध की वजह से ही ये विनाशलीला हुई क्योंकि मूर्ति को उसकी मूल जगह से हटा दिया गया था। हालांकि मंदिर के पुजारी ने इसे गलत धारणा करार दिया।

 

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