लखनऊ कला रंग की भव्य शुरूआत, श्याम शर्मा, प्रभाकर कोलते सहित कई प्रसिद्ध कलाकार जुटे
सारा लोहा उनका है मेरी केवल धार : श्याम शर्मा
लखनऊ। देश के विख्यात कलाकारों की उपस्थिति में कला एवं शिल्प महाविद्यालय लखनऊ कला रंग के रंग में रंग गया है। विख्यात चित्रकार श्याम शर्मा (पटना) एवं प्रभाकर कोलते (मुंबई) के साथ ही जयपुर आर्ट समिट के संस्थापक शैलेन्द्र भट्ट, जयपुर के प्रमुख चित्रकार अमित कल्ला और दिल्ली से पधारीं प्रमुख चित्रकार नूपुर कुंडू ने संयुक्त रूप से दीप प्रज्जवलित कर उत्सव का उद्घाटन किया। नादरंग पत्रिका द्वारा कला एवं शिल्प महाविद्यालय के साथ आयोजित किया गया यह त्रिदिवसीय उत्सव कला मेला, व्याख्यान-प्रदर्शन, प्रतियोगिता, शिविर और सांस्कृतिक कार्यक्रमों के विविध रंग समेटे हुए है।
श्याम शर्मा ने अपने पुराने दिनों को याद करते हुए कहा कि यह महाविद्यालय मेरी कला यात्रा का महत्वपूर्ण पड़ाव रहा है। उन्होंने प्रसिद्ध कवि अरुण कमल की पंक्ति ‘सारा लोहा उनका है मेरी केवल धार’ को याद करते हुए तकनीक, रंग, कैनवास और दूसरी चीजें कला में लोहा की तरह है, कलाकार की तो केवल धार होती है। उन्होंने कहा कि कलाकार कलाकृति इसलिए बनाता है कि वह उसे अच्छा लगता है। तुलसी ने भी स्वान्तः सुखाय की बात कही है। कलाकार के लिए देखना हमेशा महत्वपूर्ण रहा है। हम एक जैसा बोल सकते हैं लेकिन एक जैसा देख नहीं सकते। उन्होंने कहा कि प्रिंट मेकिंग हमारी मिट्टी में शुरू से ही थी। मेरा जन्म मथुरा के पास गोवर्धन में हुआ है।
… किन्तु पहुंचना उस सीमा तक जिसके आगे राह नहीं
वरिष्ठ चित्रकार श्याम शर्मा ने लखनऊ कला रंग के पहले दिन सोमवार को विचार व्यक्त करते हुए कहा अपने जीवन पर कई कविताओं के प्रभाव को स्वीकार करते हुए उनका उल्लेख किया। उन्होंने कहा कि जयशंकर प्रसाद की एक पंक्ति मुझे आज तक चैन से बैठने नहीं देती। यह पंक्ति है-‘इस पथ का उद्देश्य नहीं है श्रांत भवन में टिक रहना, किन्तु पहुंचना उस सीमा तक जिसके आगे राह नहीं’। उन्होंने कहा कि हरिवंश राय बच्चन की एक पंक्ति ने मेरा जीवन बदल दिया। ‘मधुशाला’ की यह पंक्ति थी-‘राह पकड़ तू एक चला चल पा जाएगा मधुशाला’। उन्होंने कहा कि इस पंक्ति को पढ़ने के बाद मैं छापा कला के ही इर्दगिर्द घूमता रहा। शर्मा ने कहा कि मैं साहित्य का विद्यार्थी रहा हूं।
श्याम शर्मा ने कहा कि कला में तकनीकी महत्वपूर्ण नहीं है। तकनीकी तो कोई भी सीख सकता है लेकिन कलाकार कोई कोई होता है। उन्होंने कहा कि छापा कलाकार तकनीक की सीमाओं में रहकर सीमाओं का अतिक्रमण करता है। कलाकार को सीखे हुए का अतिक्रमण करना होता है। उन्होंने कहा कि कला में सार्थक प्रयोग की आवश्यकता है। अनुकरण का नाम कला नहीं है।
श्याम शर्मा ने कहा कि छापा कला (प्रिंट मेकिंग) का आनंद पेंटिंग से अलग है। इसमें सीमित रंगों, सीमित रेखाओं में अपनी बात कहनी होती है। उन्होंने कहा कि छापाकला की परंपरा काफी पुरानी है। नवरात्रि में मां रोली लगाकर दीवार पर छाप देती, जब बच्चा घर में आता तो उसके दाहिन हाथ में हल्दी लगाकर कपड़े पर छाप देते तो यह भी छापा कला ही है, मंदिरों में साझी कला को देखा, मथुरा में कपड़ों पर लकड़ी के ब्लॉक से छपाई की जाती-ये सभी छापा कला के ही रूप हैं।
श्याम शर्मा ने कहा कि बड़ा होकर पिता के प्रिंटिंग प्रेस को देखा जहां लकड़ी के ब्लॉक से छपाई की जाती थी। उन्होंने कहा कि महाविद्यालय में महिपाल सिंह लीथोग्राफी सिखाते थे। उन्होंने कहा कि केवल कला शिक्षा से कोई कलाकार नहीं होता, उसे सहोदर कलाओं से भी सीखना होता है। एक कलाकार को अच्छा नाटक, अच्छी कविता, अच्छी फिल्म का भी आनंद लेना आना चाहिए और उसके मूल स्रोत को भी समझना चाहिए।
प्रसिद्ध चित्रकार प्रभाकर कोलते ने कहा कि कला कोई निबंध लिखना या गाना नहीं है, इसके लिए एक पागलपन चाहिए। आपको जो पहले से है उसे हटाकर एक नए विचार देने होते हैं। कला में आपको ये सोचना होगा कि आप क्या दे रहे हैं? उन्होंने कहा कि हमें किसी और के लिए काम नहीं करना है, आपको अपने लिए काम करना है। उपनिषद के श्लोक को उद्धृत करते हुए उन्होंने कहा कि आपको प्रेरित कौन करता है, सुनने के लिए, देखने के लिए प्रेरित कौन करता है? कोलते ने कहा कि मैं 30 साल पहले महाविद्यालय आया था और मैंने बहुत बड़ी वॉश पेंटिंग देखी। घर पर जाकर मैंने जलरंगों के कम से कम 50 पेंटिंग की। उन्होंने कहा कि विद्यार्थियों से कहा कि एक अच्छा विद्यालय आपको मिला है और इसे और अच्छा बनाने की जिम्मेदारी आपकी है।
इस मौके पर जयपुर कला समिट के संस्थापक शैलेन्द्र भट्ट ने कहा कि लखनऊ में भी कला उत्सव का यह वार्षिक आयोजन हो चुका है। उन्होंने कहा कि मैं इसके तीनों ही सत्रों का साक्षी रहा हूं। अमित कल्ला ने कहा कि आप कला देखने के बाद वह नहीं रहते जो आप पहले थे। नूपुर कुंडू ने इस उत्सव में विद्यार्थियों को बहुत कुछ सीखने को मिलेगा।
आरंभ में स्वागत करते हुए महाविद्यालय के प्राचार्य आलोक कुमार ने महाविद्यालय के इतिहास, उसके शिक्षकों के बारे में विस्तार से चर्चा की। उत्सव में कला एवं शिल्प महाविद्याल के छात्र-छात्राओं के साथ ही ललित कला अकादेमी (लखनऊ क्षेत्रीय केन्द्र), टेक्नों ग्रुप ऑफ इंस्टीट्यूशन्स, गोयल ग्रुप आफ हायर स्टडीज महाविद्यालय, हिंदी वांगमय निधि ने स्टॉल लगाए हैं।
संचालन करते हुए लखनऊ कला रंग के संस्थापक निदेशक आलोक पराड़कर ने कहा कि यह इस उत्सव का तृतीय सत्र है। इसके पूर्व के सत्रों में जतिन दास, नंद कत्याल सहित कई अतिथि चित्रकारों ने भागीदारी की है। धन्यवाद ज्ञापन लखनऊ कला रंग की समन्वयक निकिता सरीन ने किया। उद्घाटन समारोह के उपरान्त श्याम शर्मा की कला यात्रा पर सत्र का आयोजन हुआ, जिसमें उन्होंने अपने चित्रों, प्रिंटों का प्रदर्शन किया। युवा कथक नर्तक शुभम तिवारी एवं प्रिया ने कथक का मोहक कार्यक्रम प्रस्तुत किया।
स्मृति काकोरी चित्रकार शिविर
लखनऊ कला रंग में संस्कृति विभाग के सहयोग से स्मृति काकोरी चित्रकार शिविर का आयोजन किया गया है, जिसमें युवा चित्रकार काकोरी की घटना पर आधारित चित्रों का निर्माण कर रहे हैं।
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