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Prabhat Vaibhav,Digital Desk : धान कटाई का सीजन खत्म होने के साथ ही इस बार जिले से पराली जलाने को लेकर एक अच्छी खबर सामने आई है। पिछले साल की तुलना में पराली जलाने की घटनाओं में करीब 56% की कमी दर्ज की गई है, जो प्रशासन और किसानों के संयुक्त प्रयास का नतीजा है।

22 नवंबर तक जिले में कुल 235 पराली जलाने के मामले सामने आए। जबकि पहले यह स्थिति कहीं अधिक गंभीर थी — वर्ष 2022 में 3335 मामले, 2023 में 1879 और 2024 में 541 घटनाएं दर्ज हुई थीं। इन आँकड़ों से साफ है कि इस बार बड़े स्तर पर सुधार दिखा है।

अधिकारियों के मुताबिक आने वाले वर्षों में लक्ष्य पराली जलाने को पूरी तरह खत्म करना है। किसानों को लगातार बताया जा रहा है कि इस प्रक्रिया से न सिर्फ हवा खराब होती है बल्कि मिट्टी की उर्वरता भी प्रभावित होती है। इसलिए प्रशासन ने स्पष्ट कर दिया है कि आगे भी नियम तोड़ने पर सख्त कार्रवाई की जाएगी।

इस सीजन में जागरूकता अभियान, वैकल्पिक प्रबंधन उपकरण उपलब्ध कराना और दंडात्मक कार्रवाई—इन तीनों ने बड़ी भूमिका निभाई।

पराली जलाने पर 8.75 लाख रुपये का जुर्माना लगाया गया।

इनमें से 8.65 लाख रुपये की वसूली भी हो चुकी है।

170 रेड एंट्री और 172 एफआईआर दर्ज की गईं।

अधिकारियों का कहना है कि इस बार जिले में ज़ीरो टॉलरेंस पॉलिसी लागू की गई थी। गांवों में नोडल अधिकारियों की लगातार तैनाती, स्ट्रॉ मैनेजमेंट मशीनों की उपलब्धता और पंचायत स्तर पर निगरानी ने भी इस कमी में अहम योगदान दिया।

हालांकि पराली जलाने की घटनाओं में कमी आई है, लेकिन हवा की गुणवत्ता पर इसका खास सुधार नहीं दिखा। जिले का औसत एयर क्वालिटी इंडेक्स (एक्यूआई) सीजन के दौरान 6 दिन खराब श्रेणी में रहा।
सबसे प्रदूषित दिन 2 नवंबर रहा जब एक्यूआई 286 दर्ज किया गया। इसके अलावा—

21 नवंबर: 206

22 नवंबर: 262

1 नवंबर: 209

3 नवंबर: 250

8 नवंबर: 204

विशेषज्ञों के अनुसार हवा की गुणवत्ता सिर्फ पराली जलाने से प्रभावित नहीं होती। वाहनों का धुआं, निर्माण कार्य, उद्योगों से निकलने वाला प्रदूषण और मौसम का प्रभाव भी एक्यूआई को खराब करते हैं। फिर भी माना जा रहा है कि अगर पराली जलाने के मामले पिछले वर्षों जितने होते, तो हवा की स्थिति और भी खराब हो सकती थी।