Prabhat Vaibhav,Digital Desk : नवंबर का महीना अब अपने अंतिम दिनों में है, लेकिन यमुनोत्री घाटी में अभी तक एक भी बर्फ की फुहार नहीं गिरी है। हर साल इस समय तक यहां की ऊंची पहाड़ियों पर मोटी सफेद बर्फ की चादर नजर आती थी। लेकिन इस बार पहाड़ियां सूखी और काली दिख रही हैं, जिससे स्थानीय लोगों की चिंता बढ़ गई है। यही हाल गंगोत्री घाटी का भी है—दोनों जगह ऊंची चोटियां अब भी पहली बर्फबारी का इंतजार कर रही हैं।
स्थानीय बुजुर्ग प्रेम बधानी बताते हैं कि आमतौर पर नवंबर में सूरज की रोशनी भी बर्फ से चमक उठती थी। पूरे क्षेत्र में सर्दियों की सफेदी फैली रहती थी। लेकिन इस वर्ष बर्फ के न आने से मौसम में बदलाव साफ महसूस किया जा सकता है।
ऊंचाई वाले इलाकों में बर्फ की कमी के बावजूद तापमान लगातार गिर रहा है, जिससे कड़ाके की ठंड बढ़ गई है। तेज हवा और सूखे मौसम के कारण जुकाम, खांसी, बुखार और वायरल संक्रमण के मामलों में बढ़ोतरी हो रही है। स्वास्थ्य विभाग ने लोगों को सतर्क रहने, गर्म कपड़े पहनने और रात में अनावश्यक बाहर न निकलने की सलाह दी है।
स्थानीय निवासियों का मानना है कि यदि जल्द बर्फबारी नहीं हुई तो जल स्रोतों में कमी आ सकती है और खेती पर भी असर पड़ेगा। इससे आने वाले मौसम में मुश्किलें बढ़ सकती हैं।
ग्लेशियरों के लिए क्यों जरूरी है बर्फबारी?
वाडिया हिमालय भूविज्ञान संस्थान के सेवानिवृत्त ग्लेशियर विशेषज्ञ डॉ. डीपी डोभाल बताते हैं कि बर्फबारी ग्लेशियरों के लिए भोजन की तरह होती है। इससे ग्लेशियर recharge होते हैं और उन्हीं से नदियों को पानी मिलता है।
लेकिन पिछले कुछ वर्षों में मौसम का पैटर्न बदल गया है—वर्षा और बर्फबारी दोनों का समय लगातार खिसक रहा है, जो कि चिंता का विषय बन चुका है।




