
Prabhat Vaibhav,Digital Desk : अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप द्वारा रूस पर प्रतिबंध लगाने की लगातार धमकियों के बीच, रूस और चीन के बीच एक ऐतिहासिक व्यापार समझौता हुआ है। शंघाई सहयोग संगठन (SCO) शिखर सम्मेलन के बाद, रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन और चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने मंगोलिया के रास्ते चीन को प्राकृतिक गैस की आपूर्ति के लिए एक समझौते पर हस्ताक्षर किए। इस समझौते को ट्रंप की रूस को अलग-थलग करने की नीति के लिए एक बड़ी चुनौती के रूप में देखा जा रहा है। इस परियोजना के तहत, रूस चीन को सालाना 50 अरब घन मीटर गैस की आपूर्ति करेगा।
रूस और चीन के बीच लंबे समय से प्रतीक्षित 'पावर ऑफ साइबेरिया-2' गैस पाइपलाइन समझौता आखिरकार आधिकारिक हो गया है। 2 सितंबर, 2025 को, रूस की सरकारी ऊर्जा कंपनी गज़प्रोम ने घोषणा की कि पाइपलाइन के निर्माण पर कानूनी रूप से हस्ताक्षर हो गए हैं। इस समझौते को रूस और चीन के बीच घनिष्ठ संबंधों के प्रतीक के रूप में देखा जा रहा है, जो नई विश्व राजनीति में दोनों महाशक्तियों के बीच एकता को दर्शाता है।
वैश्विक राजनीति में सौदों का महत्व
यह सौदा रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन के लिए एक बड़ी जीत है। यूक्रेन युद्ध के बाद अमेरिका और यूरोपीय प्रतिबंधों के कारण रूस को यूरोपीय बाज़ार में गैस निर्यात कम करना पड़ा था। इस सौदे के ज़रिए रूस ने यूरोप के बजाय चीन को अपना मुख्य गैस खरीदार बना लिया है, जिससे उसकी आर्थिक स्थिरता बनी रहेगी। दूसरी ओर, इस सौदे को डोनाल्ड ट्रंप की कूटनीतिक हार के तौर पर देखा जा रहा है, क्योंकि वह रूसी ऊर्जा आयात पर प्रतिबंध लगाकर पुतिन पर दबाव बनाने की कोशिश कर रहे हैं।
सौदे का वित्तीय और भौगोलिक विवरण
इस समझौते के तहत, पश्चिमी रूस से उत्तरी चीन तक एक नई पाइपलाइन बिछाई जाएगी। यह पाइपलाइन सालाना 50 अरब घन मीटर प्राकृतिक गैस की आपूर्ति करेगी। विश्लेषकों के अनुसार, यह मात्रा रूस द्वारा यूरोप को निर्यात की जाने वाली गैस की लगभग आधी मात्रा की भरपाई कर सकती है। रूसी समाचार एजेंसी TASS की एक रिपोर्ट के अनुसार, गज़प्रोम के सीईओ एलेक्सी मिलर ने कहा कि यह समझौता 30 वर्षों के लिए किया गया है और चीन को आपूर्ति की जाने वाली गैस की कीमत यूरोप को आपूर्ति की जाने वाली गैस की कीमत से कम होगी। उन्होंने इस परियोजना को दुनिया की सबसे बड़ी और सबसे लाभदायक गैस परियोजना बताया। यह समझौता दर्शाता है कि चीन और रूस अमेरिका के दबाव के बावजूद अपने आर्थिक और सामरिक हितों के लिए सहयोग बनाए रखने के लिए प्रतिबद्ध हैं।