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Prabhat Vaibhav,Digital Desk : संगम नगरी प्रयागराज (पूर्व में इलाहाबाद) हमेशा से ही अपनी सनातनी संस्कृति और बहुरंगी परंपराओं के लिए जानी जाती है। यहां की गलियों और मोहल्लों का इतिहास उतना ही पुराना और दिलचस्प है जितना खुद यह शहर। इन्हीं मोहल्लों में से एक है लूकरगंज, जिसे आज लोग झूलेलाल नगर के नाम से जानते हैं।
इस क्षेत्र की नींव अंग्रेजी शासनकाल में पड़ी थी। वर्ष 1906 में जब सरकारी प्रेस के कर्मचारियों के लिए आवास की जरूरत पड़ी, तो तत्कालीन गवर्नमेंट प्रेस के सुपरिटेंडेंट एफ. लूकर के नाम पर इस मोहल्ले की स्थापना की गई। शुरुआती दौर में यहां ब्रिटिश और एंग्लो-इंडियन परिवारों को बसाया गया। उस समय यह इलाका अपने बड़े-बड़े बंगलों, हरियाली से सजे बगीचों और खास तौर पर क्लब कल्चर के लिए प्रसिद्ध था।
स्वतंत्रता के बाद भी लंबे समय तक यहां वही पुराना आकर्षण बना रहा। बंगाली समाज की मौजूदगी ने इस जगह को सांस्कृतिक रंगों से भर दिया। यहां की 125 साल पुरानी दुर्गापूजा आज भी उतनी ही प्रसिद्ध है। धीरे-धीरे सिंधी समाज भी इस क्षेत्र का हिस्सा बना और त्योहारों, खानपान और भाषा में नई विविधता जुड़ गई।
इसी मोहल्ले में कभी एशिया की मशहूर कनोडिया फ्लोर मिल भी हुआ करती थी, जिसके लिए रेलवे ने सीधी लाइन बिछाई थी। हालांकि अब वह मिल नहीं है, लेकिन इसकी यादें आज भी लोगों के जेहन में ताजा हैं।
वक्त के साथ लूकरगंज का चेहरा बदलता गया। पुराने बंगलों की जगह अपार्टमेंट और बहुमंजिला इमारतें खड़ी हो गईं। वर्ष 2000 में शासनादेश के बाद इस इलाके का नाम बदलकर झूलेलाल नगर कर दिया गया।
आज भी यहां की गलियों में घूमते हुए अतीत की झलक महसूस की जा सकती है। क्लब कल्चर अब भी कायम है, सांस्कृतिक आयोजन और खेलकूद की परंपरा जारी है। स्थानीय लोग मानते हैं कि चाहे इसका नाम बदल गया हो या शक्ल, लेकिन लूकरगंज की आत्मा अब भी वैसी ही है—रंगीन, जीवंत और सांस्कृतिक धरोहर से जुड़ी हुई।