
Prabhat Vaibhav,Digital Desk : दिल्ली उच्च न्यायालय ने एक ऐतिहासिक फैसले में स्पष्ट किया है कि विधवा बहू को अपने दिवंगत पति के पिता यानी ससुर की पैतृक संपत्ति से गुजारा भत्ता पाने का कानूनी अधिकार है। यह फैसला उन विधवाओं के लिए एक बड़ी राहत है जो अपने पति की मृत्यु के बाद आर्थिक संकट का सामना करती हैं। हालाँकि, न्यायालय ने स्पष्ट किया है कि यह अधिकार केवल पैतृक संपत्ति तक ही सीमित है, और ससुर की स्व-अर्जित संपत्ति पर लागू नहीं होता है।
दिल्ली उच्च न्यायालय ने हिंदू दत्तक ग्रहण एवं भरण-पोषण अधिनियम (HAMA) की धारा 19(1) और 19(2) का हवाला देते हुए फैसला सुनाया है कि अगर विधवा बहू अपने पति की संपत्ति या अपने बच्चों से भरण-पोषण पाने में असमर्थ है, तो वह अपने ससुर की पैतृक संपत्ति से भरण-पोषण प्राप्त कर सकती है। यह फैसला एक विधवा महिला की याचिका पर दिया गया, जिसकी याचिका निचली अदालत ने खारिज कर दी थी। उच्च न्यायालय ने निचली अदालत के फैसले को पलटते हुए उसके पक्ष में फैसला सुनाया, जिससे भारतीय न्याय व्यवस्था में सामाजिक न्याय और परिवार की सुरक्षा के मूल्यों को और बल मिला।
कानूनी प्रावधान और निर्णय
दिल्ली उच्च न्यायालय ने हिंदू दत्तक ग्रहण एवं भरण-पोषण अधिनियम (HAMA) की धारा 19(1) का हवाला दिया, जो विधवा बहू को अपने ससुर से भरण-पोषण प्राप्त करने का अधिकार देती है। हालाँकि, धारा 19(2) के तहत, यह दायित्व केवल तभी लागू होता है जब ससुर के पास पैतृक संपत्ति हो। न्यायालय ने स्पष्ट किया कि यदि ससुर के पास केवल स्व-अर्जित संपत्ति है, तो बहू का उस पर कोई कानूनी दावा नहीं है। यह निर्णय एक विधवा महिला की याचिका पर आया, जिसके पति का मार्च 2023 में और ससुर का दिसंबर 2021 में निधन हो गया था।
निचली अदालत ने महिला की भरण-पोषण याचिका खारिज कर दी थी, लेकिन उच्च न्यायालय ने निचली अदालत के फैसले को पलट दिया। अदालत ने कहा कि हिंदू दत्तक ग्रहण एवं भरण-पोषण अधिनियम एक सामाजिक कल्याणकारी कानून है, जिसका मुख्य उद्देश्य न्याय, समानता और परिवार की सुरक्षा सुनिश्चित करना है। अदालत ने ज़ोर देकर कहा कि ऐसे कानूनों की व्याख्या करते समय एक व्यावहारिक और समग्र दृष्टिकोण अपनाया जाना चाहिए, जो प्राचीन कानून के उद्देश्यों के अनुरूप हो।
यह ऐतिहासिक फैसला भारतीय समाज में विधवा बहुओं की स्थिति सुधारने में मील का पत्थर साबित हो सकता है। यह न केवल उनके आर्थिक अधिकारों को कानूनी मान्यता देता है, बल्कि परिवारों को यह स्पष्ट संदेश भी देता है कि विधवा बहुओं का पैतृक संपत्ति पर अधिकार सुरक्षित है। यह फैसला ऐसे समय में आया है जब कई परिवारों में विधवा महिलाएँ आर्थिक रूप से हाशिए पर हैं, और यह उन्हें आत्मनिर्भरता और सुरक्षा का मार्ग प्रदान करता है।