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Prabhat Vaibhav,Digital Desk : भारत और चीन के बीच ऐतिहासिक तनाव और सीमा विवाद जगजाहिर हैं, लेकिन अगर दोनों देश अपनी पुरानी दुश्मनी भुलाकर दोस्ती का हाथ बढ़ाएं तो वैश्विक राजनीति और आर्थिक जगत में भारी बदलाव आ सकते हैं। हाल ही में चीनी विदेश मंत्री वांग यी की भारत यात्रा के दौरान दोनों देशों के बीच उर्वरक और अन्य क्षेत्रों में सहयोग पर चर्चा हुई, जिससे यह सवाल उठा है कि अगर ये दो एशियाई महाशक्तियां एकजुट हो जाएं तो इसका दुनिया पर क्या असर होगा और खासकर अमेरिका की वैश्विक ताकत के सामने किस तरह की चुनौती होगी?

यदि भारत और चीन एकजुट होते हैं, तो वे वैश्विक अर्थव्यवस्था, सैन्य संतुलन और कूटनीतिक प्रभाव में एक प्रमुख शक्ति के रूप में उभरेंगे। भारत की तेज़ी से बढ़ती अर्थव्यवस्था और चीन की विशाल विनिर्माण क्षमता मिलकर एक नया व्यापार गठबंधन बना सकती है जो संयुक्त राज्य अमेरिका के लिए आर्थिक चुनौतियाँ खड़ी करेगा। कूटनीतिक रूप से, भारत-चीन गठबंधन क्वाड जैसे गठबंधनों को कमज़ोर कर सकता है और संयुक्त राष्ट्र जैसे वैश्विक मंचों पर अमेरिकी प्रभाव को चुनौती दे सकता है। सैन्य रूप से, दोनों देशों की संयुक्त शक्ति अमेरिका की सैन्य उपस्थिति और प्रभुत्व को भी कम कर सकती है।

यदि भारत और चीन के बीच व्यापार और प्रौद्योगिकी सहयोग बढ़ता है, तो यह अमेरिका के लिए एक बड़ी आर्थिक चुनौती बन सकता है। चीन की विनिर्माण क्षमता और भारत का विशाल बाजार मिलकर वैश्विक आपूर्ति श्रृंखला पर अमेरिका की निर्भरता को कम कर सकते हैं। उदाहरण के लिए, यदि दोनों देश 5G तकनीक, कृत्रिम बुद्धिमत्ता (AI) और नवीकरणीय ऊर्जा जैसे क्षेत्रों में मिलकर काम करते हैं, तो इससे अमेरिकी प्रौद्योगिकी कंपनियों को बड़ा नुकसान हो सकता है।

चीन के बढ़ते प्रभाव को संतुलित करने के लिए अमेरिका ने भारत को क्वाड गठबंधन का एक अहम हिस्सा बनाया है। लेकिन अगर भारत और चीन एक हो जाते हैं, तो क्वाड गठबंधन का महत्व कम हो जाएगा। इसके अलावा, संयुक्त राष्ट्र और अन्य अंतरराष्ट्रीय मंचों पर इन दोनों देशों की एकता अमेरिका के प्रभाव को सीधे चुनौती दे सकती है। ब्रिक्स और शंघाई सहयोग संगठन जैसे मंचों पर उनकी मज़बूत साझेदारी अमेरिका के लिए नई कूटनीतिक चुनौतियाँ खड़ी करेगी।

आर्थिक और कूटनीतिक संबंधों के अलावा, अगर भारत और चीन सैन्य क्षेत्र में सहयोग बढ़ाते हैं, तो इसका असर अमेरिका की वैश्विक सैन्य उपस्थिति पर पड़ सकता है। दोनों देशों की संयुक्त सैन्य शक्ति, विशेष रूप से हिंद महासागर और एशिया-प्रशांत क्षेत्र में, अमेरिकी नौसेना के प्रभुत्व को कम कर सकती है। अगर दोनों देश रक्षा तकनीक, खुफिया जानकारी और समुद्री सुरक्षा पर मिलकर काम करें, तो यह वैश्विक शक्ति संतुलन को पूरी तरह से बदल सकता है।