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उत्तरकाशी की सिलक्यारा सुरंग में मैनुअल खुदाई शुरू, जानिए क्या है मजदूरों को बचाने के लिए अपनाई जा रही तकनीक 'रैट-होल माइनिंग'

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(रेस्क्यू का 17वां दिन)

 

उत्तराखंड की सिलक्यारा टनल में 12 नवंबर से फंसे 41 मजदूरों को बाहर निकालने के लिए कोशिशें तेज हो गई हैं। उत्तरकाशी की सिलक्यारा सुरंग में फंसे मजदूरों को आज 17 दिन हो गए हैं। टनल से मजदूरों के सकुशल बाहर आने के लिए पूरा देश प्रार्थना कर रहा है। 

उत्तराखंड के मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने आज बताया कि मंगलवार सुबह तक 52 मीटर तक खुदाई हो चुकी है। अब मजदूरों से 7 से 8 मीटर दूरी रह गई है। 24 नवंबर को मजदूरों की लोकेशन से महज 12 मीटर पहले मशीन की ब्लेड्स टूट गई थीं। इस वजह से रेस्क्यू रोकना पड़ा। अब टनल में वर्टिकल ड्रिलिंग और मैनुअल कार्य युद्ध स्तर से चल रहा है। वहीं रेस्क्यू कार्य में भारतीय सेना भी मदद कर रही है। टनल में फंसे मजदूरों के लिए ऑक्सीजन, खाने पीने और मनोरंजन का खास ख्याल रखा जा रहा है। वहीं डॉक्टर्स की टीम मजदूरों की काउंसिलिग और स्वास्थ्य पर नजर बनाए हुए हैं। अगर सब कुछ ठीक-ठाक रहा है कल तक अच्छी खबर आ सकती है। सिलक्‍यारा सुरंग में फंसे मजदूरों को निकालने के लिए रैट-होल माइनिंग शुरू हो गई है। सुरंग से मलबा हटाने के लिए इस तरीके का इस्‍तेमाल किया गया है। 

अमेरिकी ऑगर ड्रिल मशीन टूटने के बाद बचावकर्मियों के पास यही एक रास्‍ता बचा था। इसके लिए रैट-होल माइनर्स पहुंचे हैं। सिल्क्यारा सुरंग में बाकी हॉरिजेंटल खुदाई मैन्युअल विधि से की जा रही है। इसमें सुरंग बनाने में विशेष कौशल रखने वाले व्यक्तियों को चुना गया है। इन्हें रैट-होल माइनर कहा जाता है। रैट-होल माइनिंग अत्यंत संकीर्ण सुरंगों में की जाती है। कोयला निकालने के लिए माइनर्स हॉरिजेंटल सुरंगों में सैकड़ों फीट नीचे उतरते हैं। चुनौतीपूर्ण इलाकों खासकर मेघालय में कोयला निकालने के लिए इसका विशेष तौर पर इस्तेमाल किया जाता है। साल 2014 में नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल ने मजदूरों की सुरक्षा को ध्यान में रखते हुए इस पर प्रतिबंध लगा दिया था। एनजीटी द्वारा लगाए गए प्रतिबंध के बावजूद, अवैध रूप से रैट-होल खनन जारी है।

पूर्वोत्तर के राज्य मेघालय में रैट होल माइनिंग का इस्तेमाल सबसे अधिक किया जाता है--

मेघालय में हर साल कई मजदूरों को रैट होल माइनिंग के दौरान अपनी जान गंवानी पड़ती है। यही वजह है कि इसे लेकर हमेशा से विवाद होता रहा है। रैट-होल माइनिंग मेघालय में काफी प्रचलित है। यह माइन‍िंग का एक तरीका है जिसका इस्‍तेमाल करके संकरे क्षेत्रों से कोयला निकाला जाता है। 

'रैट-होल' टर्म जमीन में खोदे गए संकरे गड्ढों को दर्शाता है। यह गड्ढा आमतौर पर सिर्फ एक व्यक्ति के उतरने और कोयला निकालने के लिए होता है। एक बार गड्ढे खुदने के बाद माइनर या खनिक कोयले की परतों तक पहुंचने के लिए रस्सियों या बांस की सीढ़ियों का उपयोग करते हैं। फिर कोयले को गैंती, फावड़े और टोकरियों जैसे आदिम उपकरणों का इस्‍तेमाल करके मैन्युअली निकाला जाता है। रैट-होल माइनिंग मुख्‍य रूप से दो तरह की होती है। एक है साइड कटिंग प्रोसीजर। दूसरी कहलाती है बॉक्‍स कटिंग। साइड कटिंग में संकरी सुरंगें बनाई जाती हैं। पहाड़ों के ढलान पर इन्‍हें बनाया जाता है। फिर इन टनल में में वर्कर जाकर कोयले की परत को तलाशते हैं। 

बॉक्‍स कटिंग तरीके में 10 से 100 वर्गमीटर तक की एक ओपनिंग बनाई जाती है। उसके बीच से 100 से 400 फीट गहरा एक वर्टिकल गड्ढा खोदा जाता है। एक बार कोयले की परत मिल जाने के बाद चूहे के बिल के आकार की सुरंगें हॉरिजॉन्‍टल रूप से खोदी जाती हैं। इसके जरिये श्रमिक कोयला निकालते हैं। वहीं उत्तराखंड सरकार के नोडल अधिकारी नीरज खैरवाल ने स्पष्ट किया कि रेस्क्यू साइट पर लाए गए लोग रैट माइनर्स नहीं बल्कि इस तकनीक में विशेषज्ञ लोग हैं। वहीं बीते दिन सिलक्यारा टनल में रेस्क्यू कार्य का जायजा लेने प्रधानमंत्री के प्रधान सचिव प्रमोद कुमार मिश्रा, केंद्रीय गृह सचिव अजय कुमार भल्ला और उत्तराखंड के मुख्य सचिव एसएस संधू पहुंचे। इस दौरान टीम ने बैठक कर रेस्क्यू ऑपरेशन से जुड़े अधिकारियों के साथ चर्चा की।

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