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Prabhat Vaibhav,Digital Desk : हिंदू धर्म में पितृ पक्ष के दौरान श्राद्ध करने की परंपरा प्राचीन काल से चली आ रही है। इससे पूर्वजों की आत्मा को शांति मिलती है।
हिंदू धर्म में पितृ पक्ष 2025 तिथि यानि श्राद्ध पक्ष का विशेष महत्व है। हिंदू धर्म में तर्पण, पिंडदान और श्राद्ध को कर्म माना जाता है जो प्राचीन काल से किया जाता रहा है। मान्यता है कि जो लोग इस धरती पर नहीं हैं, उनके लिए और पूर्वजों की आत्मा की शांति के लिए तर्पण, पिंडदान और श्राद्ध किया जाना चाहिए। इससे उनकी आत्मा को शांति मिलती है और आशीर्वाद प्राप्त होता है।
हिंदू पंचांग के अनुसार, पितृ पक्ष हर साल भाद्रपद माह के शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा तिथि से शुरू होकर अमावस्या तिथि पर समाप्त होता है। इस प्रकार पितृ पक्ष लगभग 15-16 दिनों का होता है। इस वर्ष पितृ पक्ष 7 सितंबर 2025 से शुरू होकर 21 सितंबर 2025 को समाप्त होगा। इस दौरान लोग अपने पूर्वजों की आत्मा की शांति के लिए उनकी मृत्यु तिथि पर तर्पण, पिंडदान और श्राद्ध करते हैं। इससे पूर्वज प्रसन्न होते हैं और उनके परिवार को आशीर्वाद मिलता है।
माता-पिता का महत्व
हिंदू धर्म में किसी की मृत्यु के बाद श्राद्ध किया जाता है। हिंदू धर्म की मान्यताओं के अनुसार, यह बहुत महत्वपूर्ण और अनिवार्य है। इसलिए हिंदू धर्म में पितृ पक्ष का विशेष महत्व है। इस दौरान लोग 15 दिनों तक अपने पितरों का तर्पण और पिंडदान करते हैं। धार्मिक मान्यता है कि यदि पितृ पक्ष में पितरों का श्राद्ध न किया जाए, तो उनकी आत्मा इधर-उधर भटकती रहती है, अर्थात उनकी आत्मा को मुक्ति नहीं मिलती। श्राद्ध, तर्पण और पिंडदान करने से उनकी आत्मा को शांति मिलती है।
कहा जाता है कि पितृ पक्ष में यमराज सभी पितरों को उनके परिजनों से मिलने के लिए मुक्त कर देते हैं। पितृ पक्ष के दौरान, पूर्वज भी अपने परिजनों से मिलने के लिए पृथ्वी लोक पर आते हैं। इसीलिए इस दौरान श्राद्ध और पिंडदान करने से उन्हें संतुष्टि मिलती है और वे प्रसन्न रहते हैं तथा अपने परिवार को आशीर्वाद देते हैं। उनके आशीर्वाद से परिवार में सुख, शांति और समृद्धि बढ़ती है।