
Prabhat Vaibhav,Digital Desk : पंचांग के अनुसार, हर साल भाद्रपद मास की पूर्णिमा से पितृ पक्ष (पितृ पक्ष 2025) शुरू होता है, जो आश्विन मास की अमावस्या यानी सर्वपितृ अमावस्या तक चलता है। इस बार पितृ पक्ष 7 सितंबर से शुरू हो चुका है और 21 सितंबर तक चलेगा।
किसी भी माह की एकादशी तिथि को दिवंगत हुए लोगों का श्राद्ध पितृ पक्ष की एकादशी तिथि को किया जाता है। साथ ही, संन्यास लेने वालों का श्राद्ध भी एकादशी तिथि को किया जाता है (Ekadashi Shraddha 2025 Puja Vidhi)। ऐसे में आइए जानते हैं कि पितृ पक्ष में किस दिन एकादशी श्राद्ध किया जाएगा।
एकादशी श्राद्ध शुभ मुहूर्त
पितृ पक्ष की एकादशी तिथि 17 सितंबर को दोपहर 12:21 बजे से शुरू हो रही है। यह तिथि 17 सितंबर 2025 को रात 11:39 बजे समाप्त होगी। ऐसे में एकादशी श्राद्ध 17 सितंबर, बुधवार को किया जाएगा। इस दिन का मुहूर्त कुछ इस प्रकार रहेगा।
पितृ पक्ष एकादशी कब है?
पितृ पक्ष की एकादशी तिथि 17 सितंबर को दोपहर 12:21 बजे से शुरू हो रही है। वहीं, यह तिथि 17 सितंबर 2025 को रात 11:39 बजे समाप्त होगी। ऐसे में एकादशी श्राद्ध 17 सितंबर, बुधवार को ही किया जाएगा। इस दिन शुभ मुहूर्त कुछ इस प्रकार रहेगा।
पारिवारिक मुहूर्त - सुबह 11:51 से दोपहर 12:40 तक
रोहिणी मुहूर्त- दोपहर 12:40 बजे से 01:29 बजे तक
कल दोपहर - 01:29 से 03:56 तक
श्राद्ध विधि - पूजा अनुष्ठान
एकादशी श्राद्ध के दिन प्रातःकाल पवित्र नदी में स्नान करें। यदि यह संभव न हो, तो घर पर भी जल में गंगाजल मिलाकर स्नान कर सकते हैं। इसके बाद सूर्यदेव को जल अर्पित करें और ब्राह्मणों की सहायता से पितरों का तर्पण और पिंडदान करें।
ब्राह्मणों को भोजन कराने के बाद उन्हें अपनी श्रद्धा के अनुसार दान-दक्षिणा देकर विदा करें। इसके साथ ही पंच यज्ञों अर्थात गाय, कुत्ता, कौआ, देवता और चींटी के लिए भोजन निकालें। आप एकादशी श्राद्ध के दिन काले तिल, चावल और दूध आदि का दान भी कर सकते हैं।
ये गलतियाँ मत करो.
पितृ पक्ष के दौरान सात्विक भोजन करना चाहिए और मांस-मदिरा का सेवन नहीं करना चाहिए। इसके साथ ही इस दौरान सत्तू खाना भी वर्जित है। ब्राह्मणों को भोजन परोसते समय बर्तन दोनों हाथों से पकड़ें और भोजन परोसते समय मौन रहें।
इस बात का विशेष ध्यान रखें कि कभी भी पैसे उधार लेकर श्राद्ध न करें, बल्कि हमेशा अपनी क्षमता के अनुसार ही श्राद्ध करना चाहिए। साथ ही पितृ पक्ष के दौरान सुबह और शाम दो बार स्नान करके अपने पूर्वजों का स्मरण करें।