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Prabhat Vaibhav,Digital Desk : क्या आपको अपना बचपन याद है, जब एक छोटा सा खिलौना भी दुनिया की सबसे बड़ी खुशी देता था? टॉय स्टोरी जैसी फिल्मों ने ठीक इसी मासूमियत को जिंदा किया था—जहां खिलौनों से एक खास रिश्ता जुड़ा होता था। बच्चे अपने खिलौनों के साथ घंटों खेलते, उन्हें दोस्त समझते और उनसे बातें भी करते थे।

लेकिन आज का बचपन बदल गया है। अब बच्चे खिलौनों की जगह स्मार्टफोन, टैबलेट और वीडियो गेम्स की ओर ज्यादा आकर्षित हो गए हैं। असली खेल अब वर्चुअल हो गए हैं। यह बदलाव सिर्फ आदतों तक सीमित नहीं है, बल्कि उनके शारीरिक, मानसिक और भावनात्मक विकास पर भी असर डाल रहा है।

टॉय स्टोरी 5 की कहानी में छिपा है आज का सच
टॉय स्टोरी की 5वीं फिल्म में एक टैबलेट विलेन है—जिसका साथ बच्चा अपने खिलौनों से ज्यादा समय बिताता है। यह सिर्फ कहानी नहीं, बल्कि आज के बच्चों की असलियत है। उनका असली बचपन उनसे छिनता जा रहा है।

1. शारीरिक सेहत पर गहरा असर
लंबे समय तक स्क्रीन के सामने बैठना बच्चों की आंखों पर दबाव डालता है, जिससे जलन, धुंधलापन और आंखों की कमजोरी जैसी समस्याएं बढ़ रही हैं।
फिजिकल एक्टिविटी की कमी से बच्चों में मोटापा, हड्डियों की कमजोरी और मांसपेशियों में खिंचाव जैसी दिक्कतें भी देखने को मिलती हैं। इससे इम्युनिटी कमज़ोर होती है और वे जल्दी बीमार पड़ने लगते हैं।

2. मानसिक स्वास्थ्य पर खतरा
ज्यादा स्क्रीन टाइम बच्चों की मेंटल हेल्थ के लिए भी हानिकारक है। बच्चों में चिंता, चिड़चिड़ापन, फोकस की कमी और डिप्रेशन के लक्षण दिखने लगे हैं।
ऑनलाइन गेम्स और सोशल मीडिया उन्हें एक अलग दुनिया में ले जाते हैं, जिससे उनका मानसिक संतुलन बिगड़ सकता है। हिंसक गेम्स उन्हें गुस्सैल और असंवेदनशील बना सकते हैं।

3. भावनात्मक और सामाजिक विकास में रुकावट
खिलौनों और बाहरी खेलों के ज़रिए बच्चे दोस्त बनाना और मिल-जुलकर खेलना सीखते थे, लेकिन अब वे अकेले स्क्रीन से चिपके रहते हैं।
इससे उनका भावनात्मक जुड़ाव कम होता है, बातचीत करने की क्षमता घटती है और वे परिवार और दोस्तों से दूर होते जाते हैं। धीरे-धीरे वे वास्तविक दुनिया से कटने लगते हैं, जिससे उनका संपूर्ण व्यक्तित्व प्रभावित होता है।