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Prabhat Vaibhav,Digital Desk : बिहार में मतदाता सूची के विशेष गहन पुनरीक्षण (एसआईआर) को लेकर मंगलवार (12 अगस्त, 2025) को हुई सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि चुनाव आयोग की आधार कार्ड को निर्णायक सबूत न मानने की बात सही है। कोर्ट ने कहा था कि आधार एक्ट में भी इसे सबूत नहीं माना गया है। कोर्ट ने यह बात याचिकाकर्ताओं की उस दलील पर कही थी, जिसमें कहा गया था कि एसआईआर में आधार कार्ड को स्वीकार नहीं किया जा रहा है।

एसआईआर प्रक्रिया में अनियमितताओं का दावा करने वाले याचिकाकर्ताओं की ओर से कपिल सिब्बल, प्रशांत भूषण, अभिषेक मनु सिंघवी और गोपाल शंकर नारायण जैसे वरिष्ठ वकील पेश हुए। कपिल सिब्बल ने कहा कि निवासी होना और 18 साल की उम्र होना ही काफी होना चाहिए। इस पर कोर्ट ने कहा कि परिवार रजिस्टर, पेंशन कार्ड, जाति प्रमाण पत्र जैसे कई दस्तावेज़ हैं, जिनसे निवास की घोषणा की जा सकती है। कोर्ट ने कहा कि 2003 एसआईआर वाले लोगों से भी फॉर्म भरने को कहा जा रहा है। 7.89 करोड़ में से 7.24 करोड़ लोगों ने फॉर्म भर दिया है।

कपिल सिब्बल ने SIR पर सवाल उठाते हुए कहा कि 22 लाख लोगों को मृत दिखाया जा रहा है, 36 लाख लोगों को स्थायी रूप से क्षेत्र छोड़कर चले गए दिखाया जा रहा है, लेकिन सूची नहीं दी जा रही है। प्रशांत भूषण ने भी कहा कि सूची नहीं दी जा रही है, जिस पर चुनाव आयोग के वकील राकेश द्विवेदी ने अदालत को बताया कि सभी राजनीतिक दलों के बूथ लेवल एजेंटों को सूची दी जा चुकी है। तो प्रशांत भूषण ने सवाल किया कि सिर्फ़ राजनीतिक दलों को ही क्यों, सभी को क्यों नहीं?

कपिल सिब्बल ने अदालत में यह भी सवाल उठाया कि जनवरी 2025 में जारी सूची में से 7.24 लाख लोगों को एसआईआर में मृत दिखाया जा रहा है। उनकी इस दलील पर अदालत ने कहा कि एसआईआर का उद्देश्य इन त्रुटियों को सुधारना है। याचिकाकर्ता ने यह भी सवाल उठाया है कि एक बूथ लेवल अधिकारी एक महीने में लाखों लोगों का सत्यापन कैसे कर सकता है।