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Prabhat Vaibhav,Digital Desk : हरिद्वार में आस्था के महाकुंभ कांवड़ यात्रा भले ही खत्म हो गई हो, लेकिन अपने पीछे गंगा के पावन घाटों पर गंदगी का ढेर छोड़ गई है। जो गंगा कभी साफ जल और आध्यात्मिकता का प्रतीक मानी जाती थी, वो अब प्लास्टिक, पॉलिथीन, फटे कपड़े, भोजन के अवशेष, चप्पलें और अन्य तरह के कचरे से भरी दिखाई दे रही है। आस्था और भक्ति का यह विशाल सैलाब अब गंगा और उसके घाटों की सफाई के लिए एक बड़ी चुनौती बन गया है।

मुख्य हरकी पैड़ी घाट को छोड़कर, जहां रोजाना साफ-सफाई होती है और सफाईकर्मी विशेष ध्यान देते हैं, गंगा के बाकी सभी घाट, जैसे गौ घाट, रामघाट, भोले गिरि, सती घाट, कुशावर्त, बिरला घाट, सहित छोटे-बड़े हर जगह कूड़ा बिखरा पड़ा है। श्रद्धालुओं के जल चढ़ाने के बाद बचे अवशेष, गुटखे के पैकेट, थर्माकोल के गिलास, पानी की बोतलें - सब कुछ बेतरतीब तरीके से फैले हुए हैं। हर कदम पर यह गंदगी देखकर साफ महसूस होता है कि साढ़े तीन करोड़ से ज़्यादा कांवड़ियों के पवित्र आगमन के बाद, सफाई को लेकर बड़ी लापरवाही हुई है।

सैकड़ों किलो कचरा प्रतिदिन गंगा में प्रवाहित हो रहा है, जो इसकी पवित्रता और पारिस्थितिकी तंत्र के लिए एक गंभीर खतरा है। पर्यावरण प्रेमियों और स्थानीय निवासियों ने प्रशासन और स्वयं कांवड़ यात्रियों पर सवाल उठाए हैं। "हर-हर गंगे, स्वच्छ गंगे" जैसे नारों के बावजूद, गंगा की दुर्दशा हर किसी को निराश कर रही है। गंगा की सफाई का दावा करने वाली संस्थाएं और संबंधित विभाग इस समय निष्क्रिय दिखाई दे रहे हैं। अब देखना होगा कि इस व्यापक गंदगी से निजात पाने और गंगा को उसके प्राचीन स्वरूप में लौटाने के लिए क्या ठोस कदम उठाए जाते हैं।