
Prabhat Vaibhav,Digital Desk : सोचिए, अगर हमें पहले से पता चल जाए कि कोई बाघ जंगल से बाहर निकलकर गाँव या खेत की ओर आ सकता है तो कितनी चिंता कम हो जाएगी! उत्तर प्रदेश में मानव-वन्यजीव संघर्ष, खासकर बाघों का रिहायशी इलाकों में आ जाना, एक बड़ी समस्या बनता जा रहा है। लखीमपुर, पीलीभीत और बहराइच जैसे इलाकों में ऐसे कई मामले सामने आए हैं, जब बाघ जंगल से निकलकर गाँव में घुस गए या लोगों पर हमला कर दिया।
अब इस बड़ी चिंता को दूर करने और बाघों के संरक्षण के साथ-साथ इंसानों की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए 'आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस' (AI) यानी कृत्रिम बुद्धिमत्ता का सहारा लिया जा रहा है। जी हां, अब एआई मॉडल जंगल में बाघ की हर चाल पर नजर रखेगा और खतरे की आहट मिलते ही अलर्ट जारी कर देगा!
कैसे काम करेगा ये जादू?
उत्तराखंड के देहरादून स्थित वन अनुसंधान संस्थान के वन्यजीव संरक्षण केंद्र (Wildlife Conservation Centre) ने इस अनोखी तकनीक पर काम करना शुरू कर दिया है, जिसमें उत्तर प्रदेश का वन विभाग भी सहयोग कर रहा है। इस सिस्टम के तहत:
इसका क्या फायदा होगा?
इसकी सबसे बड़ी खूबी यह होगी कि 'प्रेडिक्शन' (भविष्यवाणी) पहले ही हो जाएगी। वन विभाग के शोध निदेशक डॉ. बी.सी. चौधरी बताते हैं कि यह मौजूदा निगरानी तरीकों (जैसे बाघ के बाहर आने के बाद ट्रैक करना) से कहीं ज़्यादा असरदार होगा। एआई से पहले ही पता चल जाएगा कि बाघ के जंगल से बाहर निकलने की संभावना है।
इससे समय रहते आसपास के गांवों को अलर्ट किया जा सकेगा, लोगों को सतर्क रहने के लिए कहा जाएगा और वन विभाग की 'रेपिड रिस्पांस टीम' तुरंत सक्रिय हो जाएगी ताकि स्थिति को बिगड़ने से पहले ही संभाला जा सके। इंसानों पर हमले, पालतू पशुओं पर हमला या फसलों को नुकसान होने जैसी घटनाएं काफी हद तक कम हो जाएंगी।
यह सिर्फ इंसानों की जान-माल नहीं बचाएगा, बल्कि उन शानदार और लुप्तप्राय बाघों को भी सुरक्षित रखेगा जो जंगल के बाहर आकर कई बार संघर्ष में अपनी जान गँवा बैठते हैं। उत्तर प्रदेश से शुरू हुई यह पहल देशभर के अन्य राज्यों के लिए भी एक मिसाल बन सकती है और मानव-वन्यजीव संघर्ष को खत्म करने की दिशा में यह एक ऐतिहासिक कदम साबित हो सकता है।