Prabhat Vaibhav,Digital Desk : अमेरिका में एच-1बी वीज़ा कार्यक्रम एक बार फिर राजनीतिक बहस के केंद्र में आ गया है। राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने हाल ही में गैर-आप्रवासी कामगारों, खासकर एच-1बी वीज़ा धारकों पर नए प्रतिबंध और लगभग 1,00,000 डॉलर (करीब ₹83 लाख) का भारी-भरकम शुल्क लगाया है। ट्रंप का यह कदम स्थानीय रोज़गार को बढ़ावा देने के उद्देश्य से है, लेकिन अमेरिकी सांसदों और उद्योग विशेषज्ञों का मानना है कि यह फ़ैसला अमेरिका के तकनीकी नेतृत्व और अमेरिका-भारत रणनीतिक साझेदारी, दोनों के लिए गंभीर रूप से हानिकारक साबित हो सकता है। कैलिफ़ोर्निया और टेक्सास के चार प्रमुख सांसदों ने राष्ट्रपति ट्रंप को पत्र लिखकर इस नीति पर पुनर्विचार करने का आग्रह किया है।
सांसदों का विरोध: नवाचार और प्रतिस्पर्धा के लिए खतरा
जिमी पनेटा, अमी बेरा, सालुद कार्बाजल और जूली जॉनसन जैसे प्रभावशाली सांसदों ने अपने पत्र में इस बात पर ज़ोर दिया कि एच-1बी वीज़ा कार्यक्रम अमेरिकी अर्थव्यवस्था और नवाचार के लिए मूलभूत है। उन्होंने तर्क दिया कि इस कार्यक्रम को सीमित करने से कृत्रिम बुद्धिमत्ता (एआई), साइबर सुरक्षा और वैज्ञानिक अनुसंधान जैसे प्रमुख क्षेत्रों में अमेरिका की प्रतिस्पर्धात्मकता कमज़ोर हो जाएगी। ये प्रतिबंध न केवल प्रतिभाशाली विदेशी पेशेवरों के लिए, बल्कि अमेरिकी स्टार्टअप्स और अनुसंधान संस्थानों के लिए भी एक बड़ा झटका होंगे।
उन्होंने चेतावनी दी कि जहाँ चीन जैसी वैश्विक शक्तियाँ कृत्रिम बुद्धिमत्ता और रोबोटिक्स में अरबों डॉलर का निवेश कर रही हैं, वहीं अमेरिका को प्रतिभाओं को आकर्षित करने पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए, न कि उन्हें सीमित करने पर। अगर यह नीति जारी रही, तो इससे अमेरिका की नवाचार करने की क्षमता कम हो जाएगी और वैश्विक प्रतिस्पर्धा में उसकी स्थिति कमज़ोर हो जाएगी।
भारत-अमेरिका संबंधों और तकनीकी प्रतिभा पर सीधा प्रभाव
सांसदों ने अपने पत्र में विशेष रूप से भारत का नाम लेते हुए चिंता व्यक्त की। उन्होंने कहा कि यह नीति भारत-अमेरिका रणनीतिक साझेदारी को गंभीर रूप से नुकसान पहुँचा सकती है। उन्होंने ज़ोर देकर कहा, "भारत से आने वाली उच्च कुशल तकनीकी प्रतिभाएँ हमारे नवाचार पारिस्थितिकी तंत्र का एक अभिन्न अंग हैं।"
गौरतलब है कि पिछले साल जारी किए गए लगभग 71% एच-1बी वीज़ा भारतीय नागरिकों को दिए गए, जिससे साफ पता चलता है कि भारत इस कार्यक्रम का सबसे बड़ा लाभार्थी है। कूटनीतिक विश्लेषकों के अनुसार, इन नए शुल्कों और प्रतिबंधों के लागू होने से भारतीय प्रतिभाओं का प्रवाह कम होगा और दोनों देशों के बीच शैक्षिक और व्यावसायिक सहयोग पर भी नकारात्मक प्रभाव पड़ेगा।
छोटे व्यवसायों और स्टार्टअप्स पर बढ़ता बोझ
विरोधी सांसदों का एक मुख्य तर्क यह था कि इतनी ऊँची फीस छोटे स्टार्टअप और शोध संस्थानों के लिए अंतरराष्ट्रीय प्रतिभाओं को नियुक्त करना लगभग असंभव बना देगी। उनका मानना है कि इस नीति से केवल बड़ी कंपनियों को ही फायदा होगा। जबकि अमेरिकी नवाचार की असली ताकत और प्रेरणा छोटे व्यवसायों और उभरते स्टार्टअप्स में निहित है, जो इस बोझ को वहन नहीं कर पाएँगे। इससे अमेरिकी अर्थव्यवस्था के एक स्तंभ को नुकसान पहुँचने की संभावना है।



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