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Prabhat Vaibhav,Digital Desk : पूर्व अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के टैरिफ लगाने के फैसले के बाद वैश्विक राजनीति एक नए मोड़ पर पहुँच गई है। इस नीति ने भारत, चीन और रूस को एक साथ ला दिया है, जो एक मजबूत आर्थिक और राजनीतिक मोर्चा तैयार कर रहे हैं। विशेषज्ञों का मानना ​​है कि इन तीनों देशों का गठबंधन भविष्य में अमेरिका की ताकत को चुनौती दे सकता है और एक नई वैश्विक महाशक्ति का उदय हो सकता है।

अमेरिका द्वारा लगाए गए टैरिफ के बाद भारत, चीन और रूस के बीच संबंध और मज़बूत हुए हैं। इन तीनों देशों का संयुक्त सकल घरेलू उत्पाद लगभग 53.9 ट्रिलियन डॉलर है, जो वैश्विक आर्थिक उत्पादन का लगभग एक तिहाई है। विशेषज्ञों के अनुसार, ट्रंप की नीतियों ने इन देशों को व्यापार और राजनीति में एकजुट होने के लिए प्रेरित किया है। इस गठबंधन के पीछे एक प्रमुख कारण वैश्विक व्यापार में अमेरिकी डॉलर पर अत्यधिक निर्भरता है। भारत और चीन द्वारा रूसी तेल को स्थानीय मुद्राओं में खरीदने का निर्णय इसी 'डी-डॉलरीकरण' अभियान का हिस्सा है, जो भविष्य में व्यापार युद्ध को मुद्रा युद्ध में बदल सकता है।

वैश्विक शक्ति का एक नया केंद्र

लाइव मिंट की एक रिपोर्ट के अनुसार, सीआई और वल्लम कैपिटल के संस्थापक मनीष भंडारी ने कहा कि दुनिया की कुल जनसंख्या 8.2 अरब है और कुल आर्थिक शक्ति 173 ट्रिलियन डॉलर है। इसमें से भारत, चीन और रूस का संयुक्त सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) 53.9 ट्रिलियन डॉलर है, जो दुनिया के कुल आर्थिक उत्पादन का लगभग एक-तिहाई है। ये आँकड़े दर्शाते हैं कि ये तीनों देश आर्थिक रूप से कितने शक्तिशाली हैं। ट्रम्प के टैरिफ, जिनका उद्देश्य इन देशों को वैश्विक व्यापार से अलग-थलग करना था, अब उन्हें एक-दूसरे के करीब लाने में प्रेरक शक्ति बन गए हैं।

बढ़ते संबंध और राजनीतिक गतिविधियाँ

रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन 2025 के अंत तक भारत की यात्रा पर आएँगे, जबकि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी शंघाई सहयोग संगठन (एससीओ) शिखर सम्मेलन के लिए चीन जाएँगे। 2018 के बाद यह उनकी पहली चीन यात्रा होगी। विशेषज्ञों का मानना ​​है कि ये राजनीतिक यात्राएँ महज़ औपचारिकताएँ नहीं हैं, बल्कि एक मज़बूत आर्थिक और राजनीतिक गठबंधन का संकेत हैं।

व्यापार युद्ध से मुद्रा युद्ध तक

अमेरिका और यूरोपीय देशों द्वारा रूस पर प्रतिबंध लगाए जाने के बाद, भारत और चीन ने रूस से कच्चा तेल खरीदना जारी रखा, लेकिन स्थानीय मुद्राओं में। बसव कैपिटल के संस्थापक संदीप पांडे के अनुसार, इस कदम से इन देशों को अपने डॉलर भंडार बढ़ाने में मदद मिली। यह 'डी-डॉलराइज़ेशन' अभियान का हिस्सा है, जिसका उद्देश्य वैश्विक व्यापार में अमेरिकी डॉलर पर निर्भरता कम करना है। ट्रंप के टैरिफ इस प्रक्रिया को और तेज़ कर रहे हैं, जो भविष्य में वैश्विक व्यापार युद्ध को मुद्रा युद्ध में भी बदल सकता है।