
Prabhat Vaibhav,Digital Desk : उत्तराखंड का एनएच-74 मुआवजा घोटाला राज्य के सबसे बड़े घोटालों में गिना जाता है। यह मामला 2017 में उजागर हुआ, जब राज्य में त्रिवेंद्र सिंह रावत की सरकार सत्ता में आई। इस मामले में खुलासा हुआ कि राष्ट्रीय राजमार्ग-74 के चौड़ीकरण के लिए दी जा रही मुआवजा राशि का जमकर दुरुपयोग हुआ।
दरअसल, ऊधमसिंह नगर ज़िले से गुजरने वाले इस फोरलेन प्रोजेक्ट के चलते सैकड़ों एकड़ ज़मीन किसानों से ली गई थी। लेकिन अफसरों और कुछ किसानों ने मिलीभगत कर कृषि भूमि को गलत तरीके से अकृषक ज़मीन घोषित कर दिया। नियमों के खिलाफ जाकर ज़मीन की वैल्यू कई गुना बढ़ाकर करोड़ों का मुआवजा ले लिया गया।
शुरुआती जांच में अनुमान लगाया गया कि करीब 250 करोड़ रुपये की गड़बड़ी हुई है। आयुक्त कुमाऊं की रिपोर्ट के आधार पर तत्कालीन सरकार ने आठ पीसीएस अधिकारियों को दोषी पाया। सात अधिकारियों को तत्काल सस्पेंड कर दिया गया, जिनमें तीरथ पाल सिंह, अनिल शुक्ला, डीपी सिंह, नंदन सिंह नगन्याल, भगत सिंह फोनिया, सुरेंद्र सिंह जंगपांगी और जगदीश लाल शामिल थे।
इसके बाद पूरे मामले की जांच एसआईटी को सौंपी गई। एसआईटी ने जांच कर लगभग 30 से ज्यादा लोगों को जेल भेजा, जिनमें कई अधिकारी और कुछ किसान भी शामिल थे। जांच में यह बात भी सामने आई कि घोटाले की कुल राशि 400 करोड़ रुपये से भी अधिक हो सकती है।
ईडी (प्रवर्तन निदेशालय) ने भी इस मामले में अपनी जांच शुरू की। इसमें पीसीएस अफसर डीपी सिंह, सेवानिवृत्त अधिकारी भगत सिंह फोनिया समेत आठ लोगों पर मनी लांड्रिंग का मामला दर्ज किया गया। इन पर लगभग 8 करोड़ रुपये के धनशोधन का आरोप है।
5 अगस्त 2022 को ईडी ने डीपी सिंह, दिनेश भगत सिंह फोनिया, पूर्व तहसीलदार मदन मोहन पाडलिया, फाइबरमार्क्स पेपर्स प्राइवेट लिमिटेड और उसके अधिकारियों जसदीप सिंह गोराया व हरजिंदर सिंह के खिलाफ कोर्ट में चार्जशीट दाखिल की। विशेष ईडी कोर्ट ने इन सभी आरोपियों पर करीब 7.99 करोड़ की अवैध कमाई का प्रमाण पाया है, जो ज़मीन की खरीद-फरोख्त और मूल्य निर्धारण में की गई गड़बड़ियों से अर्जित की गई थी।
यह घोटाला न केवल प्रशासनिक भ्रष्टाचार का एक बड़ा उदाहरण है, बल्कि यह भी दिखाता है कि कैसे अफसर-किसान गठजोड़ से सरकारी योजनाओं को पलीता लगाया जा सकता है।