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Prabhat Vaibhav,Digital Desk : इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ खंडपीठ ने एक अहम आदेश पारित किया है। न्यायालय ने स्पष्ट किया कि तहसीलों में लंबित मुकदमों की सुनवाई में यदि देरी होती है और इसका कोई ठोस कारण नहीं है, तो संबंधित पीठासीन अधिकारी जिम्मेदार होंगे। न्यायालय ने कहा कि यह वर्ष 2023 में दयाशंकर मामले में दिए गए आदेशों की अवमानना के रूप में देखा जाएगा और ऐसे अधिकारियों के खिलाफ मुकदमा चलाया जा सकता है।

यदि मुकदमे की सुनवाई में देरी तहसील के बार एसोसिएशन की हड़ताल के कारण हो रही है, तो बार एसोसिएशन के पदाधिकारी भी अवमानना के मुकदमे के लिए जिम्मेदार होंगे।

न्यायालय ने अपने आदेश की प्रति राजस्व परिषद के अध्यक्ष को भेजने का निर्देश दिया और कहा कि यह आदेश सभी तहसीलों के राजस्व अधिकारियों तक पहुँचाया जाए तथा वहां के नोटिस बोर्ड पर चस्पा किया जाए। यह आदेश न्यायमूर्ति अरुण सिंह देशवाल की एकलपीठ ने परशुराम व अन्य की याचिका पर पारित किया।

याचिका में बलरामपुर जिले की उतरौला तहसील में लंबित राजस्व मुकदमों की त्वरित सुनवाई का अनुरोध किया गया था। न्यायालय ने पाया कि मुकदमों की सुनवाई में सबसे बड़ा कारण बार-बार होने वाली हड़तालें हैं।

न्यायालय ने याद दिलाया कि 2023 में दयाशंकर मामले में हाईकोर्ट ने स्पष्ट किया था कि राजस्व संहिता में विभिन्न प्रकार के मुकदमों के लिए अलग-अलग समय सीमाएँ निर्धारित हैं। उदाहरण के तौर पर, नामांतरण संबंधित वादों में यदि आपत्ति है तो 90 दिन में और आपत्ति नहीं है तो 45 दिन में मुकदमा निपट जाना चाहिए।

हाईकोर्ट ने कहा कि यदि यह आदेश नहीं माना गया या बार एसोसिएशन की हड़ताल के कारण अनुपालन नहीं हो पाया, तो जिम्मेदारी संबंधित अधिकारियों और पदाधिकारियों की होगी।