बेगूसराय, 09 जून। गर्मी का प्रकोप चरम पर है। मौसम विभाग द्वारा हीट वेव का अलर्ट जारी किए जाने पर सरकारी स्तर से लोगों को बहुत आवश्यक होने पर ही घर से निकलने की अपील की जा रही है। तापमान 43 डिग्री पार होने से बीमार होने वालों की संख्या तेजी से बढ़ रही है। इसके लिए सावधानी ही एकमात्र विकल्प है।
बेगूसराय के चर्चित फिजिशियन और डायबिटोलॉजिस्ट डॉ. राहुल कुमार बताते हैं कि गर्मी और तेज धूप के कारण होने वाली बीमारी क्या होता है, यह सभी लोगों को पता होना चाहिए। शरीर में तापमान नियंत्रण का केंद्र ब्रेन के अंदर हाइपो थैलेमस नामक स्ट्रक्चर के द्वारा निर्धारित होती है। हाइपोथैलेमस शरीर के तापमान को एक रेंज में नियंत्रण में रखती है।
हाइपो थैलेमस को सिग्नल टेम्परेचर सेंसिटिव न्यूरॉन जो स्किन में रहते के द्वारा मिलते रहता है। उसके अनुसार वह बॉडी के हीट को नियंत्रित करता है। ठंड के मौसम में खून की नली को सिकुड़ा कर, शिवेरिंग कर हीट लॉस कम करता है। गर्मी के मौसम में खून की नली को फैला कर तथा स्वेटिंग के माध्यम से हीट लॉस को बढ़ाता है।
यह बॉडी के कोर टेम्परेचर 36.5 डिग्री सेंटीग्रेड से 37.5 डिग्री सेंटीग्रेड या 97.7 डिग्री फोरेन हाइट से 99 डिग्री फॉरेन हाइट को एक रेंज में नियंत्रित रखता है। अत्यधिक गर्मी या तेज धूप से जब कोई व्यक्ति प्रभावित होता है तो उसे हीट रिलेटेड चार तरह की समस्या हो सकती है। हीट क्रेम्प, हीट सिनकोप, हीट क्षय एवं हीट स्ट्रोक।
हीट क्रेम्प में मरीज के मांसपेशियों में दर्द कॉन्ट्रेक्शन होता है। यह अधिक पसीना चलने से सोडियम की कमी से होता है। इसका इलाज ओआरएस पानी के साथ लेना तथा नस में नार्मल स्लाइन देना है। सादा पानी देने से नुकसान हो सकता है। दूसरी समस्या होती है हीट सिनकोप। इसमें मरीज कुछ क्षण के लिए बेहोश हो जाता है। इसमें भी आईवी एनएस बेस्ट इलाज है तथा बाहर से कूलिंग करना चाहिए (ठंडे पानी से पोंछना एवं पंखे से हवा करना आदि)।
तीसरी समस्या है हीट क्षय (थकावट)। यह सबसे कॉमन हाइपर थर्मिक सिचुएशन होती है। यह गर्मी के मौसम में देर तक धूप में रहने से या खुली धूप में काम करने से होती है। इसमे बॉडी का कोर टेम्परेचर 37 डिग्री सेंटीग्रेड से 40 डिग्री सेंटीग्रेड तक हो जाता है। इससे सर दर्द, उल्टी, तेज गति से धड़कन, कमजोरी, बेचैनी आदि होती है, ब्लड प्रेशर भी कम हो जाता है।
इसका इलाज बाहर से कूलिंग, ओआरएस, आईवी एनएस, आइस पैक से सेकना तथा ठंडा स्पंजिंग करना होता है। शुरु के 24 घंटे में पांच लीटर एनएस तक की जरूरत पड़ सकती है। चौथी और सबसे खतरनाक समस्या को हीट स्ट्रोक बोला जाता है। इसमें कोर बॉडी टेम्परेचर 40 डिग्री सेंटीग्रेड से ज्यादा हो जाता है। ब्लड प्रेशर कम हो जाती है, बेचैनी, उल्टी, सर दर्द होता है, शरीर बहुत गर्म रहता है। लेकिन स्वेटिंग नहीं होती है, पोटेशियम बढ़ जाता है।
ब्लड में, शरीर में कंपन, चमकी आदि हो सकता है। तुरंत इसका इलाज नहीं करने पर जान पर खतरा हो जाता है। इसके लिए आईवी एनएस, ओआरएस, आइस पैक से सेकाई, बाहर से कूलिंग तथा वाइटल पैरामीटर के आधार पर इलाज करना होता है। कुल मिलाकर गर्मी में बहुत व्यायाम नहीं करें, पानी ओआरएस लेते रहें, तेज धूप में खुले नहीं जाएं। अत्यधिक पसीना शरीर से नहीं निकले, इसका ध्यान रखें।