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Land law in Uttarakhand : हिमाचल प्रदेश की तर्ज पर उत्तराखंड में भू-कानून की जरूरत-शंकर सागर

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देहरादून। राज्य में भू-अध्यादेश अधिनियम अभियान (भू-कानून अभियान) के संस्थापक व मुख्य संयोजक शंकर सागर ने हिमाचल प्रदेश की तर्ज पर उत्तराखंड में भू-कानून की जरूरत बताई। उन्होंने कहा कि वर्ष 1994 के दौरान जब उत्तराखंड राज्य की मांग चरम पर थी, तब सभी की एक ही परिकल्पना थी कि हिमाचल जैसा राज्य बने। अब एक बार फिर हिमाचल जैसा भू-कानून की लहर उठी है।

उत्तरांचल प्रेस क्लब के सभागार में बुधवार को पत्रकारों से बातचीत के दौरान मुख्य संयोजक शंकर सागर ने कहा कि एक नियम के अनुसार जब किसी राज्य का गठन किया जाता है तो उसके स्थापना से लेकर 15 वर्ष पूर्व से निवास की गणना की जाती है। यदि उत्तराखंड राज्य की स्थापना नौ नवंबर 2000 को हुई है तो मूल निवास की कट ऑफ डेट नौ नवंबर 1985 स्वतः ही मानी जाएगी। राज्य को बने 25 वर्ष होने जा रहा है। यह अंतर 40 वर्षों का हो रहा हैं। मूल निवास 1985 हमारे भू-कानून की मांग में निहित है, जिसका स्वरुप हिमाचल जैसा है।

उन्होंने कहा कि उत्तराखंड एक सीमांत प्रदेश है, जिसकी सरहदें पूर्व में नेपाल व उत्तर में चीन से लगी हैं। लिहाजा उत्तराखंड वासियों की जिम्मेदारी देश के अन्य नागरिकों से ज्यादा बनती है। ऐसे में जल-जंगल-जमीन, रोटी-बेटी, संस्कृति व पारस्थितिकी के साथ हक-हकूक को हर हाल में बचाना ही होगा। उन्होंने कहा कि हिमाचल प्रदेश जैसा भू-कानून के लागू होने का समय आ गया है, इसलिए मौकापरस्तों व विश्वास खो चुकीं राजनैतिक पार्टियों तथा बाहरी आयातित सहित बाहरी भू-माफियाओं से सावधान रहने की जरूरत है।

पत्रकार वार्ता के दौरान दिनेश फुलारा, धना वाल्दिया, अशोक नेगी, आनंदी चंद, आनंद सिंह रावत, हंसा धामी, इंद्रदेव सती, सुभागा फर्सवाण, आचार्य प्रकाश पंत, कृष्णा बिज्लवाण, भुवन गोश्वामि, किरन सुन्द्रियाल आदि उपस्थित थे।

भू-कानून में ये है प्रावधान

भू-कानून के तहत राज्य के बाहर से एक परिवार को 250 वर्ग मीटर से ज्यादा जमीन खरीदने पर प्रतिबंधित है। वर्ष 2018 के (राज्य विरोधी) भू-कानून को वापस लेने, सुभाष कुमार समिति की 23 बिंदुओं की (हिमाचल की तर्ज पर हो भू-कानून) रिपोर्ट की अनुशंसा को जस के तस लागू करने एवं बाहरी, फर्जी व अवैध कंपनियों तथा लैंड डेवलपरों द्वारा ली गई जमीनों का उक्त प्रयोजन व समय पर उपयोग न होने के कारण नियम 167 में निहित करने के साथ 1962-64 के बाद सभी पार्वतीय जिलों में भू-संसोधन, भूमि-सुधार (भूमि-बंदोबस्तीकरण) की मंशा, वन तथा सरकारी व ग्राम-समाज, नगर-निगम, नगर पंचायत नदी-नालों-खालों, वक्फ बोर्ड, ट्रस्टों, एनजीओ व विभिन्न समितियों द्वारा अतिक्रमित भूमि को राज्य सरकार में निहित करने एवं राज्य स्थापना से लेकर अब तक लगे सभी भू-अध्यादेश व भू-अधिनियमों को समाप्त कर पहला पृथक भू-कानून लाने की धामी सरकार की दृढ़ मंशा है।

 

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