धर्म डेस्क। शारदीय नवरात्रि के नौ दिन पावन होते हैं। नवरात्रि की हर तिथि माता जगजननी के भिन्न-भिन्न स्वरूप को समर्पित है। नवरात्रि में सनातनी विधि-विधान से देवी पूजन करते हैं और नौ दिनों का व्रत रखते हैं। शास्त्रों के अनुसार आदिशक्ति के हर स्वरूप से अलग-अलग मनोरथ पूर्ण होते हैं। इस बार शारदीय नवरात्रि 3 अक्टूबर दिन गुरुवार से प्रारंभ हो रही है। आदि शक्ति की पूजा प्रारंभ करने से पूर्व कलश की स्थापना की जाती है। आइये नवरात्र में कलश या घट स्थापना के शुभ मुहूर्त के बारे में जानते हैं ...
हिन्दू पंचांग के अनुसार शारदीय नवरात्रि में घट या कलश स्थापना का सबसे शुभ मुहूर्त 3 अक्टूबर को प्रातः 6:35 से 8:03 तक है। यदि आप अपरिहार्य कारणों से इस अवधि में कलश स्थापना नहीं कर पाते हैं तो दोपहर 12:03 से 12:50 तक अभिजित मुहूर्त में कलश स्थापना कर सकते हैं। लोक मान्यता है कि शुभ मुहूर्त में घट स्थापना करने से माता दुर्गा प्रसन्न होकर पूरा आशीर्वाद देती हैं।
इस बार नवरात्रि का प्रारंभ 3 अक्टूबर से हो रहा है। 3 अक्टूबर को प्रतिपदा तिथि, 4 अक्टूबर को द्वितीया, 5 अक्टूबर को तृतीया, 6 अक्टूबर को तृतीया, 7 अक्टूबर को चतुर्थी, 8 अक्टूबर को पंचमी, 9 अक्टूबर को षष्ठी, 10 अक्टूबर को सप्तमी, 11 अक्टूबर को अष्टमी व नवमी और 12 अक्टूबर को विजयादशमी तिथि है।
उल्लेखनीय है कि आदि शक्ति की आराधना के लिए नवरात्रि की नवमी और अष्टमीतिथि बेहद महत्वपूर्ण तिथियाँ मानी जाती हैं। इन तिथियों से जुड़ी आध्यात्मिक मान्यताएँ भी हैं। इसलिए इन तिथियों पर देवी आराधना के कुछ खास नियमों का ध्यान रखना जरूरी होता है। यह जानना आवश्यक है कि महाअष्टमी तिथि नवमी तिथि के साथ हो। दरअसल, महाअष्टमी और नवमी का संयोजन विशेष शुभ माना जाता है। शास्त्रों के अनुसार यह संयोजन शुभ और फलदायी होता है।
पुराणों के अनुसार अष्टमी का पालन सप्तमी के साथ करने से अशुभ परिणाम मिल सकता है। कहा जाता है कि सप्तमी के साथ अष्टमी तिथि का पालन करने से जीवन में शोक और कष्ट आते हैं। इसके अलावा पुरे नवरात्रि के दौरान मन और वचन से सात्विक रहें। अप्रिय वचन न बोलें। फलाहार आदि में शुद्धता का विशेष ध्यान रखें।