हल्द्वानी। जैव विविधता से लेकर वन्यजीवों तक के लिए उत्तराखंड में 15 फरवरी से 15 जून तक का समय काफी चुनौती भरा होता है। दरअसल ये फायर सीजन होता है। इन चार महीनों में यहां के जंगलों के आग लगने की घटनाएं बढ़ जाती हैं। हालांकि राज्य का वन विभाग महकमा रोज इन घटनाओं का आंकलन करता है ताकि बचाव को लेकर आगे की तैयारी की जा सके।
बताया जा रहा है कि बीते चार मई तक विभाग मानता था कि राज्य में 18 हजार पेड़ आग की चपेट में आकर राख हो चुके हैं लेकिन अब उसका कहना है कि गढ़वाल की अलकनंदा सिविल सोयम डिवीजन में महज 15 हजार पौधे ही जले थे लेकिन गलती से उन्हें वृक्षों के तौर पर अपडेट कर दिया गया था। ऐसे में सवाल ये उठता है कि जंगलों की आग जैसे गंभीर मामले में ऐसी गलती कैसे हो सकती है।
गौरतलब है कि उत्तराखंड में फायर सीजन के पहले डेढ़ माह यानी मार्च तक अधिक दिक्कत नहीं हुई थी लेकिन अप्रैल का पूरा महीना जंगलों के लिए नुकसान दायक साबित हुआ। आग पर काबू पाने को लेकर वन विभाग द्वारा किये गए तमाम दावे सिर्फ हवा हवाई ही साबित हुए। यहीं वजह है सिर्फ अप्रैल महीन में 2702 हेक्टेयर जंगल आग की चपेट में आ गया।
वहीं, 15 फरवरी से 12 मई तक की बात करें तो 3120.09 हेक्टेयर जंगल आग की भेट चढ़ चुका है। मालूम हो कि वन विभाग हर रोज अपनी सरकारी वेबसाइट पर आग की घटनाओं के ताजे आंकड़े और नुकसान को अपडेट भी करता है। चार मई को हुए अपडेट में राज्य में 18 हजार पेड़ जले दिखाए गए थे। इसमें अलकनंदा डिवीजन में 15 हजार पेड़ों का नुकसान बताया गया था।