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Prabhat Vaibhav, Digital Desk: बिहार की सियासत में महागठबंधन के भीतर राजद और कांग्रेस के बीच संबंध सहज नहीं दिख रहे हैं। इसका एक बड़ा कारण मुस्लिम वोटों को लेकर बनी असमंजस की स्थिति है। सीमांचल की कई सीटों पर मुस्लिम मतदाता निर्णायक हैं, जो राजद के 'माय समीकरण' (मुसलमान-यादव) का अहम हिस्सा रहे हैं।

राजद को आशंका है कि मुस्लिम वोटों का बिखराव उसकी स्थिति कमजोर कर सकता है। ऐसे में एआईएमआईएम उसके लिए एक संभावित सहयोगी के रूप में उभर रहा है। वहीं, एआईएमआईएम को भी इस बार किसी ठोस गठबंधन की उम्मीद नहीं है। इसी वजह से दोनों पार्टियां पर्दे के पीछे तालमेल बनाने की कोशिश कर रही हैं।

हालांकि, सीटों के बंटवारे को लेकर पुरानी तकरार और अविश्वास की परछाइयां अब भी बनी हुई हैं। कांग्रेस ज्यादा सीटें चाहती है और राजद पर दबाव बना रही है। राजद के लिए यह सिर्फ राजनीतिक हिस्सेदारी का मामला नहीं है, बल्कि उसके जनाधार का भी सवाल है।

कभी मुसलमानों का झुकाव कांग्रेस की ओर था, फिर लालू यादव को उन्होंने समर्थन दिया। अब एआईएमआईएम और जन सुराज पार्टी जैसे दल भी मुस्लिम वोट बैंक को लुभाने की कोशिश कर रहे हैं। कांग्रेस को इस बार उम्मीद है क्योंकि उसके तीन में से दो लोकसभा सांसद मुस्लिम हैं। यही विश्वास भविष्य की तैयारी में झलकता है।

राजद के भीतर अब यह चिंता है कि कहीं एआईएमआईएम से नजदीकी मुस्लिम वोटों के ध्रुवीकरण का कारण न बन जाए। 2020 के विधानसभा चुनाव में सीमांचल में ओवैसी की पार्टी ने राजद को नुकसान पहुंचाया था। पांच सीटें जीतने वाली एआईएमआईएम ने बाद में अपने चार विधायकों को राजद में शामिल होते देखा।

अब सिर्फ अख्तरूल ईमान एआईएमआईएम के साथ हैं, जो प्रदेश अध्यक्ष भी हैं। उनका कहना है कि सांप्रदायिक ताकतों को हराने के लिए सभी सेकुलर दलों को एक होना चाहिए। उनके अनुसार, पुराने मतभेद भुलाकर एकजुटता ही बेहतर विकल्प है।

हालांकि, राजद इस मुद्दे पर सावधानी बरत रहा है। लालू और तेजस्वी यादव के अलावा कोई खुलकर इस पर बोलने को तैयार नहीं है। क्योंकि अंदरखाने चिंता है कि इससे ध्रुवीकरण और नुकसान दोनों हो सकते हैं।