
Prabhat Vaibhav,Digital Desk : भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआई) ने देशभर के ऐतिहासिक स्मारकों की सुरक्षा के लिए सख्त कानून बनाए हैं। नियम साफ कहते हैं कि स्मारक के पास कोई भी अवैध निर्माण नहीं होना चाहिए। इसके लिए जुर्माना और सजा तक का प्रावधान है। लेकिन हकीकत यह है कि इन नियमों का असर जमीन पर कहीं दिखता नहीं।
गढ़ी भदौरिया स्थित ढाकरी का महल इसका सबसे बड़ा उदाहरण है। 2013 से 2020 के बीच एएसआई महानिदेशक ने यहां 45 अवैध निर्माण गिराने के आदेश दिए, लेकिन एक भी निर्माण नहीं टूटा। नतीजा यह हुआ कि आज भी इस अकबरकालीन स्मारक के आसपास कब्जे और निर्माण लगातार जारी हैं।
स्मारक के पास कानून की अनदेखी
1958 के प्राचीन स्मारक एवं पुरातत्व स्थल अधिनियम (2010 में संशोधित) के अनुसार किसी भी संरक्षित स्मारक से 100 मीटर का क्षेत्र "प्रतिबंधित क्षेत्र" और 200 मीटर तक का दायरा "विनियमित क्षेत्र" माना जाता है। प्रतिबंधित क्षेत्र में निर्माण पूरी तरह वर्जित है, जबकि विनियमित क्षेत्र में अनुमति लेकर ही कोई काम किया जा सकता है।
ढाकरी का महल के आसपास हुए निर्माण साफ तौर पर इन नियमों का उल्लंघन हैं। एएसआई ने बार-बार पुलिस को तहरीर दी, नोटिस जारी किए, लेकिन कार्रवाई सिर्फ कागजों तक ही सीमित रह गई।
बीबी ईशवर्दी का मकबरा
एएसआई के रिकॉर्ड के अनुसार ढाकरी का महल, अकबर की पत्नी बीबी ईशवर्दी का मकबरा है। लाल बलुआ पत्थर से बने इस मकबरे की ऊंचाई करीब 31 फीट है। इसकी छत पर खूबसूरत मुगलकालीन पेंटिंग्स बनी हैं और खंभों पर अलग-अलग नक्काशी देखने को मिलती है। गुंबद पर कलश और चारों कोनों पर बुर्जियां इसकी शान बढ़ाती हैं।
इतिहासकार मानते हैं कि यह स्मारक मुगल स्थापत्य का एक अनमोल नमूना है। लेकिन अवैध कब्जों की वजह से इसका असली स्वरूप धीरे-धीरे खतरे में है।
आदेश और हकीकत
एएसआई एक्ट के तहत 2013 से 2020 तक कई लोगों को नोटिस देकर निर्माण हटाने के आदेश दिए गए। नाम और तारीखें तक दर्ज हैं, लेकिन नतीजा शून्य रहा। न तो कार्रवाई हुई और न ही अवैध निर्माण रोके जा सके।
सवाल वही – जिम्मेदार कौन?
इतिहास और धरोहर को बचाने का जिम्मा जिन संस्थाओं पर है, वही कार्रवाई से बचती दिख रही हैं। सवाल यह है कि जब आदेश और कानून दोनों मौजूद हैं, तो अवैध निर्माण क्यों नहीं रुक रहे? क्या आने वाली पीढ़ियां सिर्फ किताबों में ही इन स्मारकों को देख पाएंगी?