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इलाहाबाद लोकसभा सीट : पुरानी गरिमा के साथ शिक्षा व रोजगार बना चुनावी मुद्दा

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प्रयागराज। इलाहाबाद संसदीय सीट की गिनती देश के अतिमहत्वपूर्ण लोकसभा क्षेत्रों में होती है। आजादी के पहले और आजादी मिलने के काफी समय तक देश के अहम फैसले इसी धरती से लिए जाते थे। लेकिन लगभग तीन दशकों से इलाहाबाद की महिमा और गरिमा को ग्रहण लग गया है। इस बार के लोकसभा चुनाव में इस सीट पर इलाहाबाद की पुरानी गरिमा के साथ ही शिक्षा और रोजगार का मुद्दा सरगर्म है।विपक्षी कांग्रेस अपने कार्यकाल में हुए औद्योगिक विकास और बंद कारखानों का मुद्दा छेड़ रही है। बीजेपी पीएम मोदी और राम के नाम पर मैदान में है। बीएसपी भी दलित वोटों के दम पर ताल ठोक रही है।

इस बार बीजेपी ने मौजूदा सांसद डॉ. रीता बहुगुणा जोशी की जगह पूर्व विधानसभा अध्यक्ष केसरीनाथ त्रिपाठी के पुत्र नीरज त्रिपाठी को, कांग्रेस ने करछना से दो बार सपा से विधायक रह चुके और दिग्गज नेता रेवतीरमण सिंह के पुत्र उज्ज्वल रमण को और बीएसपी ने ठेकेदार रमेश पटेल को मैदान में उतारा है। हालांकि मुख्य लड़ाई बीजेपी के नीरज त्रिपाठी और कांग्रेस के उज्ज्वल रमण के बीच है।

गौरतलब है कि इलाहाबाद लोकसभा सीट का इतिहास बेहद समृद्ध रहा है। इस सीट से पूर्व प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री, पूर्व पीएम विश्वनाथ प्रताप सिंह, हेमवतीनंदन बहुगुणा, जनेश्वर मिश्र, डॉ. मुरली मनोहर जोशी और कुंवर रेवती रमण सिंह प्रतिनिधित्व कर चुके हैं। इस बार यहाँ से दो पूर्व सियासी दिग्गजों के पुत्र मैदान में हैं। इसलिए इसे विरासत की जंग भी कहा जा रहा है।

फिलहाल मतदाताओं के रुख को देखते हुए इस सीट पर किसी भी दल के लिए लड़ाई आसान नहीं नजर आ रही है। क्षेत्र के छोटे व्यापारी और किसान मंहगाई का मुद्दा उठा रहे हैं। यमुना पार के युवा बेरोजगारी और नैनी की बंद फैक्ट्रियों के मुद्दे पर सत्तारूढ़ पार्टी को घेर रहे हैं। शंकरगढ़, बारा और कोरांव के मतदाता पेयजल की समस्या से परेशान हैं। इसी तरह शहर के लोग इलाहाबाद विश्वविद्यालय की गरिमा के साथ ही बेरोजगारी के मुद्दे पर बीजेपी से नाराज हैं।

यमुनापार के मोतीलाल पोस्ट ग्रेजुएट कालेज के प्राचार्य डॉ. मणिशंकर द्विवेदी कहते हैं कि पिछले तीन दशकों में इलाहाबाद में विकास का कोई काम नहीं हुआ है। पुराने उद्योग बंद हो चुके हैं। नए खुले नहीं। नैनी, शंकरगढ़ की फैक्ट्रियां बंद पडी हैं। पूर्व का आक्सफोर्ड कहा जाने वाला इलाहाबाद विश्वविद्यालय आँशु बहा रहा है। प्रतियोगियों को कोई पूछ नहीं रहा है। पेपर लीक की घटनाओं ने प्रतियोगियों की मेहनत पर पानी फेरने का काम किया है। ऐसे में क्षेत्र की जनता में सत्तारूढ़ पार्टी के प्रति आक्रोश है।

इन हालातों में इलाहाबाद की लड़ाई बेहद कठिन है। कांग्रेस के उज्ज्वल रमण और बीजेपी के नीरज त्रिपाठी अपने अपने पिता की विरासत की बात करते हैं।  अगर सियासी विरासत की बात करें तो कुंवर रेवती रमण सिंह की विरासत कहीं अधिक समृद्ध है। यमुना पार इलाके में कुंवर रेवती रमण सिंह की लोकप्रियता आज भी है। इसका फायदा उज्वल रमन को मिल रहा है। 
 

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