Prabhat Vaibhav,Digital Desk : बिहार में विधानसभा चुनाव 2025 कुछ अलग ही रूप में नजर आ रहा है। इस बार मतदाता अपने वोट के फैसले में केवल जाति या नेता की ताकत नहीं देख रहे, बल्कि योजनाओं और अपनी रोजमर्रा की जरूरतों को सबसे ज्यादा महत्व दे रहे हैं। हाल ही में घोषित कई योजनाएं सोशल मीडिया और आम बातचीत में सबसे ज्यादा चर्चा में हैं।
तीन बड़ी घोषणाओं की चर्चा हर ओर
इस चुनाव में तीन मुख्य योजनाओं पर सबसे ज्यादा ध्यान है:
125 यूनिट मुफ्त बिजली:
पहले जब बिहार में स्मार्ट मीटर लगाए गए थे, तब उपभोक्ताओं ने बिजली बिल बढ़ने पर नाराजगी जताई थी। अब मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने घोषणा की है कि सभी घरेलू उपभोक्ताओं को हर माह 125 यूनिट मुफ्त बिजली मिलेगी। इससे कई लोगों का बिल पूरी तरह शून्य हो गया, जबकि कई का आधा रह गया। चुनाव के मौसम में यह योजना खूब चर्चा में है।
मुख्यमंत्री महिला रोजगार योजना:
इस योजना के तहत सभी महिलाओं के बैंक खाते में सरकार 10-10 हजार रुपए भेज रही है। छह माह तक संतोषजनक कार्य करने पर उन्हें अतिरिक्त 2 लाख रुपए मिलेंगे। यह कदम महिलाओं की आर्थिक सशक्तिकरण की दिशा में बड़ी पहल माना जा रहा है।
सामाजिक सुरक्षा पेंशन में वृद्धि:
मुख्यमंत्री वृद्धजन पेंशन योजना के तहत पेंशन राशि 400 रुपए से बढ़ाकर 1100 रुपए कर दी गई है। इसी तरह विधवा और दिव्यांग पेंशन राशि भी 1100 रुपए प्रतिमाह कर दी गई। जुलाई से ही लाभुकों के खाते में यह राशि सीधे डीबीटी के माध्यम से जा रही है। अब तक 1.40 करोड़ लोगों की पेंशन बढ़ी है, और यह चुनावी चर्चा का एक बड़ा हिस्सा बन गई है।
अपने हितों पर केंद्रित कामकाजी वर्ग
इस बार चुनाव में कई कामकाजी वर्ग भी अपने हितों को लेकर केंद्रित हैं। खासकर अनुसूचित जाति और जनजाति वर्ग के विकास मित्र इस चुनाव में योजनाओं से सीधे जुड़े हैं:
सरकार उन्हें टैबलेट खरीदने के लिए 25 हजार रुपए दे रही है।
परिवहन भत्ता 1900 से बढ़ाकर 2500 रुपए किया गया। स्टेशनरी भत्ता 900 से बढ़ाकर 1500 रुपए कर दिया गया।
शिक्षा सेवकों को स्मार्टफोन खरीदने के लिए 10-10 हजार रुपए दिए जा रहे हैं।
स्नातक उत्तीर्ण बेरोजगारों को स्वयं सहायता भत्ता के रूप में दो साल तक 1000-1000 रुपए मिलेगा।
ममता और आशा कार्यकर्ताओं के मानदेय भी बढ़ाए गए हैं।
स्टूडेंट क्रेडिट कार्ड योजना के तहत पढ़ाई के लिए मिलने वाले ऋण को अब ब्याज मुक्त किया गया है।
इन सभी पहलों से साफ दिख रहा है कि इस बार बिहार के मतदाता अपने निजी हितों और योजनाओं के प्रभाव को देखकर मतदान करने की ओर बढ़ रहे हैं।



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