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Prabhat Vaibhav,Digital Desk : विजयदशमी के दिन पूरे देश में रावण दहन और बुराई पर अच्छाई की जीत का उत्सव मनाया गया। इसी क्रम में जालंधर के श्री सिद्ध शक्तिपीठ, श्री देवी तालाब मंदिर स्थित प्राचीन महाकाली मंदिर में भी श्रद्धालुओं का तांता लगा रहा।

मंदिर के परिक्रमा मार्ग की ऊपरी मंजिल पर स्थित मंदिर के कपाट वीरवार को खासतौर पर महिलाओं और बच्चों के लिए खोले गए। जैसे ही कपाट खुले, परिसर में श्रद्धा और उत्साह का अनोखा मिलन देखने को मिला। राज्यभर से आई महिलाएं और बच्चे मां महाकाली के दर्शन कर आशीर्वाद लेने पहुंचे।

मंदिर में महिलाओं के प्रवेश की परंपरा केवल दशहरे के दिन ही होती है। यह नियम परम तपस्वी मोहनी बाबा ने तय किया था। कहा जाता है कि बाबा ने इसी स्थान पर वर्षों तक कठोर तपस्या की और फिर मां महाकाली की प्रतिमा स्थापित कर यह परंपरा बनाई कि मंदिर के कपाट वर्ष में केवल विजयदशमी पर महिलाओं के लिए खुले।

सुबह हवन और यज्ञ के साथ कार्यक्रम की शुरुआत हुई। मंदिर के पुरोहितों ने वैदिक मंत्रोच्चारण के साथ यज्ञ संपन्न करवाया। इसके बाद भजन गायकों ने ‘मौज लग गई ए, कोई थोड़ वी ना रही ए’ और ‘अज करके दीदार तेरा जाना’ जैसे भक्ति गीतों से वातावरण को भक्तिमय बना दिया। भक्तगण जयघोष करते हुए झूम उठे और दिनभर मंदिर में उत्सव जैसा माहौल बना रहा।

मंदिर कमेटी के सेवादार योगेश्वर शर्मा और अशोक सोबती ने बताया कि यह परंपरा सैकड़ों वर्षों से चली आ रही है। श्रद्धालु इस दिन को बेहद शुभ मानते हैं और मां महाकाली के दर्शन से जीवन की सभी बाधाओं के दूर होने की कामना करते हैं।

भक्तों ने मां महाकाली को विविध भोग अर्पित करने के बाद विशाल लंगर का आयोजन किया। मंदिर के पुजारी पंडित भूमि प्रसाद ने श्रद्धालुओं को इस परंपरा के ऐतिहासिक और धार्मिक महत्व से अवगत कराया। उन्होंने कहा, “मां महाकाली की पूजा और अर्चना से व्यक्ति के जीवन में सकारात्मक ऊर्जा और शक्ति का संचार होता है।”