
Prabhat Vaibhav,Digital Desk : उत्तर प्रदेश में महानिदेशक चिकित्सा शिक्षा (डीजीएमई) के पद को लेकर विवाद बढ़ता जा रहा है। पांच राजकीय मेडिकल कॉलेजों के प्रधानाचार्य इस पद के लिए दावेदारी कर रहे हैं, लेकिन सरकार इस पद पर आईएएस अधिकारियों की तैनाती कर रही है।
हाल ही में हाईकोर्ट, लखनऊ बेंच ने राजकीय मेडिकल कॉलेज अंबेडकर नगर के प्रधानाचार्य डॉ. मुकेश यादव की याचिका पर सरकार को कहा कि वह उनके आवेदन पर विचार करे।
वर्तमान में मेरठ, कानपुर, जालौन, सहारनपुर और अंबेडकर नगर के मेडिकल कॉलेजों में स्थाई प्रधानाचार्य उत्तर प्रदेश लोक सेवा आयोग से चयनित हैं। इनमे से किसी को प्रोन्नति देकर महानिदेशक का पद दिया जा सकता है।
आईएएस की तैनाती का इतिहास:
कोरोना काल के दौरान चिकित्सा शिक्षा महानिदेशालय में कार्यवाहक महानिदेशक के रूप में आईएएस की नियुक्ति शुरू हुई।
सबसे पहले 19 मई 2021 को आईएएस सौरभ बाबू को कार्यवाहक बनाया गया।
इसके बाद डॉ. एनसी प्रजापति को यह जिम्मेदारी दी गई।
10 जून 2022 को आईएएस श्रुति सिंह और 22 मार्च 2023 तक पद पर रहीं।
फिर डॉ. जीके अनेजा और उसके बाद 27 मार्च 2023 को आईएएस किंजल सिंह।
वर्तमान में अपर्णा यू महानिदेशक के पद पर तैनात हैं।
चिकित्सा शिक्षकों का कहना है कि शासन ने 2021 से आईएएस की तैनाती शुरू कर दी थी। 28 जून 2023 को कैबिनेट ने महानिदेशक पद पर आईएएस नियुक्ति की मंजूरी दी और इसे 19 मई 2021 से लागू करने का आदेश जारी किया।
इस आदेश में यह स्पष्ट किया गया कि अगर प्रधानाचार्य न हों, तो सचिव स्तर के आईएएस को महानिदेशक के पद पर तैनात किया जाएगा। यही कारण है कि डॉ. मुकेश यादव ने हाईकोर्ट में याचिका दाखिल की।
उपमुख्यमंत्री ब्रजेश पाठक का कहना है कि:
“महानिदेशक के पद पर आईएएस की तैनाती नियमों के अनुसार है। हाईकोर्ट का आदेश मिलने के बाद आगे की स्थिति स्पष्ट होगी।”