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Prabhat Vaibhav,Digital Desk : मृत्यु का अर्थ है जीवन का अंत, और इसे विभिन्न संस्कृतियों, दर्शनों और धार्मिक मान्यताओं में अलग-अलग अर्थों में समझा जाता है। यह एक जैविक प्रक्रिया है जिसके अंत में शरीर निष्क्रिय हो जाता है, और विभिन्न धर्मों और दर्शनों में इसे आत्मा के शरीर छोड़कर विभिन्न लोकों में जाने या पुनर्जन्म लेने की प्रक्रिया से जोड़ा जाता है।

मृत्यु के समय आत्मा शरीर छोड़ देती है। यही भाग्य है। आत्मा को अपने परिजनों का दुःख महसूस होता है, यही कारण है कि आत्मा को मोह से मुक्त करने के लिए शव का दाह संस्कार किया जाता है ताकि वह परिजनों के बंधनों से मुक्त होकर यमलोक की यात्रा शुरू कर सके। हिंदू धर्म में मृत्यु के बाद मृतक के साथ कई तरह की प्रक्रियाएं की जाती हैं। इन्हीं में से एक है मृत्यु के बाद अंगूठा बांधना, ऐसा क्यों किया जाता है, इसके पीछे क्या गहरा कारण है।

मृत्यु के बाद अंगूठे क्यों बांध दिए जाते हैं?

पुराणों के अनुसार, जब किसी व्यक्ति की मृत्यु होती है, तो सबसे पहले उसके दोनों पैरों के पंजों को आपस में बाँध दिया जाता है। यह बहुत ज़रूरी है क्योंकि इससे मूलाधार इतना कठोर हो जाता है कि आत्मा वहाँ से दोबारा शरीर में प्रवेश नहीं कर पाती।

दरअसल ऐसा आत्मा की आसक्ति समाप्त करने के लिए किया जाता है, अन्यथा वह शरीर के किसी भी खुले अंग, विशेषकर मूलाधार के माध्यम से, पुनः शरीर में प्रवेश करने का प्रयास करेगी। मूलाधार वह स्थान है जहाँ से जीवन का आरंभ होता है। हिंदू धर्म में मूलाधार चक्र को जीवन ऊर्जा का केंद्र माना जाता है। पैरों के पंजों में बंध बांधकर इस चक्र को स्थिर किया जाता है।

आत्मा का शरीर छोड़ना क्यों आवश्यक है?

मृत्यु के बाद आत्मा को यमलोक जाना पड़ता है, जहाँ यमराज उसके कर्मों का मूल्यांकन करते हैं। अच्छे कर्म करने वाली आत्माओं को स्वर्ग भेजा जाता है, जबकि बुरे कर्म करने वाली आत्माओं को नर्क में दंडित किया जाता है।