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Prabhat Vaibhav,Digital Desk : लुधियाना पश्चिम विधानसभा सीट पर आज वोटिंग हो रही है, लेकिन ये सिर्फ एक सीट का चुनाव नहीं है — बल्कि ये पंजाब की राजनीति की दिशा तय करने वाला मौका बन गया है। आम आदमी पार्टी, कांग्रेस, भाजपा और शिरोमणि अकाली दल – चारों ही बड़ी पार्टियां इस चुनाव को पूरी ताकत से लड़ रही हैं, जैसे किसी राज्य की सत्ता के लिए लड़ाई हो।

आम आदमी पार्टी की प्रतिष्ठा दांव पर
राज्य में दो-तिहाई बहुमत के साथ सत्ता में काबिज आम आदमी पार्टी के लिए यह उपचुनाव न सिर्फ सीट बचाने का सवाल है, बल्कि भविष्य की सियासी रणनीति का भी केंद्र है। गुरप्रीत गोगी बस्सी के निधन के बाद खाली हुई यह सीट पार्टी के लिए खास मायने रखती है। अगर पार्टी इस सीट को नहीं बचा पाई तो यह 2027 के चुनावी समीकरणों पर भी असर डाल सकता है।
खास बात यह है कि इस जीत के जरिए पार्टी किसी बड़े नेता को राज्यसभा भेजने की तैयारी में है — जैसे अरविंद केजरीवाल, मनीष सिसोदिया या फिर सत्येंद्र जैन। इसलिए संजीव अरोड़ा को मैदान में उतारा गया है। हार की स्थिति में पार्टी की पंजाब में पकड़ कमजोर हो सकती है।

कांग्रेस के लिए वर्चस्व की वापसी की लड़ाई
कांग्रेस प्रत्याशी भारत भूषण आशू के लिए यह चुनाव बहुत अहम है। 2022 में हार और फिर भ्रष्टाचार के आरोपों के चलते जेल जाने के बाद अब उन्होंने पूरी ताकत से वापसी की है। पार्टी में आंतरिक कलह के बावजूद उन्होंने ज़बरदस्त लड़ाई खड़ी कर दी है।
अमरिंदर सिंह राजा वड़िंग से मतभेद के चलते आशू ने उन्हें अपने प्रचार से दूर रखा। अगर वह जीतते हैं, तो वह कांग्रेस में एक मज़बूत नेता के तौर पर उभर सकते हैं।

भाजपा की उम्मीदें वोट बैंक पर टिकीं
भाजपा ने उम्मीदवार की घोषणा में देरी की, लेकिन लोकसभा चुनाव में मिले वोटों के आधार पर वह आत्मविश्वास से भरी है। 2024 के चुनाव में इस विधानसभा क्षेत्र में भाजपा को 45 हजार वोट मिले थे, जबकि 2022 में भी 28 हजार से ज्यादा वोट पार्टी के पक्ष में गए थे।
अगर भाजपा इन आंकड़ों को बनाए रख पाती है, तो यह उसके पंजाब में बढ़ते जनाधार की पुष्टि होगी।

अकाली दल की साख दांव पर
शिरोमणि अकाली दल इस उपचुनाव में भले ही चौथे स्थान पर माना जा रहा हो, लेकिन लंबे समय बाद वह पूरी ताकत से मैदान में है। पार्टी अध्यक्ष सुखबीर बादल ने इसे गंभीरता से लिया है और परोपकार सिंह घुम्मण जैसे साफ छवि वाले प्रत्याशी को उतारा है।
हालांकि पिछले उपचुनावों में अकाली दल की स्थिति कमजोर रही है, लेकिन अगर वह अच्छे वोट हासिल करने में कामयाब हो जाती है, तो यह उनके लिए बड़ी उपलब्धि होगी।