Prabhat Vaibhav,Digital Desk : पहले चरण के विधानसभा चुनाव नज़दीक हैं और अब राजनीतिक दलों की नजरें मुस्लिम वोट बैंक पर टिक गई हैं। इस बार आरजेडी और जेडीयू, दोनों ही पार्टियां अपने-अपने तरीके से मुस्लिम वोटरों को साधने में लगी हैं।
तेजस्वी यादव ने वक्फ कानून के मुद्दे को सामने रखकर मुस्लिम समाज से सीधा संवाद साधने की कोशिश की है। उन्होंने कई जनसभाओं में कहा कि अगर उनकी सरकार बनी तो वक्फ कानून में हुए हालिया संशोधनों को "कूड़ेदान में फेंक देंगे"।
वहीं, जेडीयू के कार्यकारी राष्ट्रीय अध्यक्ष संजय झा ने तेजस्वी के इस बयान पर पलटवार किया। उन्होंने कहा कि वक्फ कानून जब संसद में पेश हुआ था, तब जेडीयू ने संयुक्त संसदीय समिति बनाने का सुझाव दिया था, जिसे बाद में स्वीकार भी किया गया। उनके अनुसार, “कानून कोई खिलौना नहीं जिसे डस्टबिन में फेंका जा सके।”
इधर, मुख्यमंत्री नीतीश कुमार भी मुस्लिम समाज को याद दिला रहे हैं कि उनकी सरकार ने हमेशा सबके साथ समान व्यवहार किया है। उनका कहना है कि जेडीयू की सरकार में मुस्लिम समुदाय को हर क्षेत्र में उचित प्रतिनिधित्व मिला है। उन्होंने बिना किसी का नाम लिए कहा कि “कुछ लोग मुस्लिम वोट के नाम पर सिर्फ राजनीति करते हैं, लेकिन उन्हें असली हिस्सेदारी कभी नहीं दी।”
नीतीश कुमार ने चुनाव से पहले मुस्लिम समाज को यह भी संदेश दिया कि वे अपने अनुभव और काम के आधार पर तय करें कि किसे वोट देना है। उन्होंने कहा, “हमने आपके समाज के लिए काम किया है, उसे याद रखिए।”
बिहार की सियासत में मुस्लिम वोट हमेशा अहम रहे हैं। राज्य में मुस्लिम आबादी करीब 17.7 प्रतिशत है और लगभग 50 से 70 विधानसभा सीटों पर यह वोट निर्णायक भूमिका निभाता है। खासकर सीमांचल के जिले — किशनगंज, कटिहार, अररिया और पूर्णिया — मुस्लिम मतदाताओं के गढ़ माने जाते हैं।
किशनगंज में 68%, कटिहार में 44%, अररिया में 43% और पूर्णिया में 39% मुस्लिम आबादी है। 2020 के विधानसभा चुनाव में कुल 19 मुस्लिम विधायक चुने गए थे, जो सदन का लगभग आठ प्रतिशत हिस्सा हैं।
इस बार भी चुनावी माहौल में वही सवाल गूंज रहा है — मुस्लिम वोट किस ओर जाएगा? राजद या जदयू? आने वाले दिनों में इसका जवाब मिल जाएगा, लेकिन फिलहाल दोनों दलों के लिए यह वोट बैंक जीत की कुंजी बना हुआ है।




