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Prabhat Vaibhav,Digital Desk : सनातन धर्म में शरद पूर्णिमा को बेहद खास पर्व माना जाता है। शरद पूर्णिमा पर माता लक्ष्मी की विशेष पूजा-अर्चना की जाती है। इसके अलावा भगवान विष्णु की पूजा करने से आर्थिक समस्याएं भी दूर होती हैं। जयपुर, जोधपुर स्थित पाल बालाजी ज्योतिष संस्थान के निदेशक ज्योतिषाचार्य डॉ. अनीष व्यास ने बताया कि इस वर्ष शरद पूर्णिमा 6 अक्टूबर 2025 को मनाई जाएगी। हर साल आश्विन मास के शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा को शरद पूर्णिमा कहते हैं। धार्मिक मान्यता है कि इस दिन आसमान से अमृत की बूंदें बरसती हैं।

ज्योतिषाचार्य डॉ. अनीष व्यास ने बताया कि इस वर्ष शरद पूर्णिमा पर चंद्रमा शाम 7:26 बजे उदय होगा। जो लोग व्रत रखना चाहते हैं, वे 6 अक्टूबर को शरद पूर्णिमा का व्रत रख सकते हैं और फिर शाम को चंद्रमा की पूजा कर सकते हैं।

कोजागरी पूर्णिमा को एक और नाम दिया गया है।
ज्योतिषाचार्य डॉ. अनीष व्यास ने बताया कि देश के कई हिस्सों में शरद पूर्णिमा को कोजागरी पूर्णिमा के नाम से भी जाना जाता है। पश्चिम बंगाल, ओडिशा और असम में कोजागरी पूर्णिमा का त्योहार बड़ी श्रद्धा के साथ मनाया जाता है।

कोजागरी पूर्णिमा पर देवी लक्ष्मी की विशेष पूजा-अर्चना की जाती है। भगवान विष्णु की भी पूजा की जाती है। पश्चिम बंगाल और ओडिशा में ऐसी मान्यता है कि धार्मिक पूजा-अर्चना करने से आर्थिक समस्याओं से मुक्ति मिलती है और सुख-समृद्धि बढ़ती है।

शरद पूर्णिमा पर भगवान कृष्ण ने महारास लीला की थी।
पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, शरद पूर्णिमा पर भगवान कृष्ण ने महारास लीला की थी। इस दिन चंद्र देव की विशेष पूजा की जाती है और खीर का भोग लगाया जाता है। शरद पूर्णिमा पर चंद्रमा पृथ्वी के सबसे निकट होता है।

अंतरिक्ष में स्थित सभी ग्रहों से निकलने वाली सकारात्मक ऊर्जा चंद्रमा की किरणों के माध्यम से पृथ्वी पर पड़ती है। चांदनी में खीर बनाकर उसे खुले आसमान के नीचे रखने के पीछे एक वैज्ञानिक कारण यह भी है कि चंद्रमा की औषधीय किरणें खीर को अमृत के समान बना देती हैं। तब इसका सेवन स्वास्थ्य के लिए लाभकारी होगा।

शरद पूर्णिमा, 6 अक्टूबर 2025
शरद पूर्णिमा और कोजागर व्रत आश्विन पूर्णिमा को ही मनाया जाता है, जो प्रदोष और निशीथ की रात्रि में पड़ती है। यदि पूर्णिमा पहले दिन पड़े और प्रदोष के दूसरे दिन न पड़े, तो व्रत पहले दिन ही रखा जाता है।

  • आश्विन पूर्णिमास्यां  कोजागर  व्रतम् । स  पूर्वत्रैव  निशिथव्याप्ति  द्वितीया।

इस वर्ष पूर्णिमा 6 अक्टूबर 2025 को पड़ेगी तथा 7 अक्टूबर 2025 को प्रदोष काल नहीं होगा। इसलिए शरद पूर्णिमा और कोजागर व्रत 6 अक्टूबर 2025 को मनाया जाएगा।

कुण्डली विश्ल़ेषक डॉ. अनीष व्यास ने बताया कि हिंदू पंचांग के अनुसार, आश्विन मास की पूर्णिमा तिथि 6 अक्टूबर को दोपहर 12:23 बजे से शुरू होगी। यह अगले दिन 7 अक्टूबर को सुबह 9:06 बजे समाप्त होगी। पंचांग गणना के आधार पर, इस वर्ष शरद पूर्णिमा 6 अक्टूबर को मनाई जाएगी।


इस वर्ष शरद पूर्णिमा के दिन एक बहुत ही अनोखा संयोग बनने जा रहा है। इस दिन सर्वार्थ सिद्धि योग के साथ उत्तराभाद्रपद नक्षत्र भी रहेगा, जो इस दिन को और भी विशेष एवं फलदायी बना देगा।

ज्योतिषाचार्य अनीष व्यास के अनुसार, शरद पूर्णिमा का महत्व
यह है कि धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, माता लक्ष्मी शरद पूर्णिमा के दिन ही समुद्र मंथन से प्रकट हुई थीं। इसलिए इस तिथि को धन-संपत्ति का स्रोत भी माना जाता है।

ऐसा माना जाता है कि इस दिन देवी लक्ष्मी पृथ्वी पर विचरण करती हैं और जो लोग रात्रि जागरण करके उनकी पूजा करते हैं, उन्हें माता लक्ष्मी का आशीर्वाद प्राप्त होता है और उन पर धन-समृद्धि की वर्षा होती है। शरद पूर्णिमा को कोजागरी पूर्णिमा या रास पूर्णिमा के नाम से भी जाना जाता है।

इस दिन चंद्रमा पूर्णिमा पर होता है और चांदनी पूरी धरती पर फैल जाती है। ऐसा माना जाता है कि चूँकि धरती दूधिया रोशनी में नहाई होती है, इसलिए इस दिन चंद्रमा की किरणें अमृत बरसाती हैं, इसलिए रात में चांदनी में खीर रखने की परंपरा है।

शरद पूर्णिमा पूजा अनुष्ठान
कुण्डली विश्ल़ेषक डॉ. अनीष व्यास इस दिन ब्रह्म मुहूर्त में उठकर पवित्र नदी में स्नान करने की सलाह देते हैं। यदि आप नदी में स्नान नहीं कर सकते हैं, तो घर पर ही पानी में गंगाजल मिलाकर स्नान करें और फिर साफ़ वस्त्र धारण करें।

अब एक लकड़ी के पाटे या थाली पर लाल कपड़ा बिछाकर उसे गंगाजल से शुद्ध करें। पाटे पर देवी लक्ष्मी की मूर्ति स्थापित करें और उन्हें लाल दुपट्टे से सजाएँ। लाल फूल, इत्र, प्रसाद, धूपबत्ती और सुपारी से देवी लक्ष्मी की पूजा करें।

इसके बाद देवी लक्ष्मी के समक्ष लक्ष्मी चालीसा का पाठ करें। पूजा पूरी होने के बाद आरती करें। शाम को देवी लक्ष्मी और भगवान विष्णु की पुनः पूजा करें और चंद्रमा को अर्घ्य दें। पूजा के बाद चावल और गाय के दूध से बनी खीर बनाकर उसे चांदनी में रखें। आधी रात को देवी लक्ष्मी को खीर का भोग लगाएं और परिवार के सभी सदस्यों को प्रसाद के रूप में खिलाएं।