
Prabhat Vaibhav,Digital Desk : देश के नए उपराष्ट्रपति के चुनाव के नतीजे भले ही उम्मीद के मुताबिक रहे हों, लेकिन मतगणना ने राजनीतिक गलियारों में खूब बहस छेड़ दी है। एनडीए उम्मीदवार सीपी राधाकृष्णन और विपक्षी गठबंधन भारत के उम्मीदवार जस्टिस सुदर्शन रेड्डी को मिले वोटों के बीच का अंतर कई सवाल खड़े करता है। विपक्षी खेमे के 15 वोट कहां गए और एनडीए को अपनी आधिकारिक संख्या से 14 वोट ज़्यादा कैसे मिल गए, यह मुद्दा अब चर्चा के केंद्र में है, खासकर तब जब इस चुनाव में कोई व्हिप लागू नहीं है।
उपराष्ट्रपति चुनाव का सांख्यिकीय विश्लेषण
उपराष्ट्रपति चुनाव में लोकसभा और राज्यसभा के कुल 788 सांसदों को भाग लेना था, लेकिन केवल 767 सांसदों ने ही मतदान किया, जबकि बीजू जनता दल, बीआरएस और अकाली दल मतदान में शामिल नहीं हुए। परिणामों के अनुसार:
सी.पी. राधाकृष्णन को कुल 452 वोट मिले।
न्यायमूर्ति सुदर्शन रेड्डी को कुल 300 वोट मिले।
शेष 15 मत अवैध घोषित कर दिए गए।
इसके अनुसार, सीपी राधाकृष्णन की जीत का अंतर 152 वोटों का था। ये आँकड़े राजनीतिक विश्लेषकों के लिए दिलचस्प विषय बन गए हैं।
क्रॉस वोटिंग का चौंकाने वाला खुलासा
आंकड़ों पर गौर करें तो एनडीए के पास कुल 438 विधायक हैं। हालाँकि, वाईएसआर कांग्रेस के 11 सांसदों ने भी चुनाव में एनडीए का समर्थन किया था, जिससे एनडीए के विधायकों की कुल संख्या 449 हो गई। हालाँकि, सीपी राधाकृष्णन को 452 वोट मिले, यानी उन्हें अपने गठबंधन से 3 वोट ज़्यादा मिले। ये 3 वोट कहाँ से आए, यह एक सवाल है।
दूसरी ओर, विपक्षी गठबंधन भारत के कुल 315 सांसद थे, लेकिन उनके उम्मीदवार जस्टिस सुदर्शन रेड्डी को केवल 300 वोट मिले। इसका साफ़ मतलब है कि विपक्षी खेमे के कम से कम 15 वोट क्रॉस-वोटिंग के शिकार हुए या उन्हें अवैध घोषित कर दिया गया।
चूँकि इस चुनाव में पार्टी व्हिप लागू नहीं है, इसलिए सांसद अपनी 'अंतरात्मा की आवाज़' पर वोट कर सकते हैं। विपक्ष ने इस उम्मीद में अपने उम्मीदवार उतारे थे कि एनडीए के कुछ सांसद क्रॉस वोटिंग करेंगे, लेकिन हुआ उल्टा और खुद भारतीय ब्लॉक के सांसदों ने क्रॉस वोटिंग कर दी।
सांसदों की जिम्मेदारी और राजनीतिक चुनौतियाँ
यह पता नहीं चल पाया है कि क्रॉस-वोटिंग करने वाले ये 15 सांसद कौन हैं, क्योंकि यह एक गुप्त मतदान है और जब तक सांसद खुद कुछ नहीं कहते, तब तक यह रहस्य बरकरार रहेगा। लेकिन ये नतीजे विपक्षी गठबंधन के लिए, खासकर आगामी विधानसभा चुनावों में, एक बड़ी चुनौती पेश करते हैं।
यह जनादेश दर्शाता है कि विपक्षी एकता अभी भी कितनी कमज़ोर है। बिहार में आगामी चुनाव और पश्चिम बंगाल में ममता बनर्जी के साथ बिगड़ते रिश्तों जैसे मुद्दों के बीच, यह क्रॉस-वोटिंग विपक्ष की रणनीति पर भी सवाल उठाती है।