
Prabhat Vaibhav,Digital Desk : गुप्त नवरात्र माघ और आषाढ़ मास में आते हैं, लेकिन ये आम नवरात्रों जैसे नहीं होते। यहां कोई सजावट, शो, या उत्सव नहीं होता। न तो ढोल-नगाड़े बजते हैं, न ही कोई सार्वजनिक आयोजन होता है। फिर भी, यह नवरात्र उतना ही पवित्र और शक्तिशाली माना जाता है — बल्कि अधिक।
यह वो समय होता है, जब साधक शांति के साथ आत्मा की यात्रा शुरू करता है। गुप्त नवरात्र का असली सार यही है — खुद को जानने की कोशिश, अपने भीतर के डर, भ्रम, गुस्से और अहंकार को समझने और उससे ऊपर उठने का प्रयास।
ये नौ दिन बाहर से नहीं, भीतर से देखे जाते हैं। पूजा की कोई विशेष विधि नहीं, पर श्रद्धा और एकांत साधना जरूरी होती है। हर दिन एक दीप जलाकर देवी की शरण में बैठ जाइए। मंत्र जाप करें, नवार्ण मंत्र का उच्चारण करें और खुद के अंदर देवी को महसूस कीजिए।
इन दिनों कोई वरदान मांगने की जरूरत नहीं होती। गुप्त नवरात्र आत्मशुद्धि और चेतना के जागरण का समय होता है, न कि सांसारिक इच्छाओं की पूर्ति का। यह उन लोगों के लिए है, जो भीतर की गहराइयों से डरते नहीं, बल्कि उन्हें समझना चाहते हैं।
गुप्त नवरात्र का अभ्यास किसी गुरु के बिना भी हो सकता है। सिर्फ एकांत, मौन और सच्ची श्रद्धा चाहिए। हर दिन एक महाविद्या को जानें, समझें और उसके माध्यम से अपने अस्तित्व की गहराइयों में उतरें।
यह साधना आपके भीतर छिपी ऊर्जा को जगाएगी, जो बाहर नहीं दिखती — लेकिन जीवन बदल सकती है।