img

Prabhat Vaibhav,Digital Desk : केंद्रीय मंत्री जीतन राम मांझी ने एक बार फिर बिहार की शराबबंदी नीति पर सवाल उठाते हुए कहा कि कानून तो ठीक है, लेकिन इसका क्रियान्वयन बेहद खराब तरीके से हो रहा है। उन्होंने आरोप लगाया कि बड़े नेता, अधिकारी और प्रभावशाली लोग रात में महंगी शराब पीते हैं, लेकिन उन पर किसी तरह की कार्रवाई नहीं होती। वहीं गरीब मजदूर वर्ग का कोई व्यक्ति 50 या 100 ग्राम पी ले, तो उसे जेल भेज दिया जाता है।

पत्रकारों से बातचीत में मांझी ने कहा कि दिनभर मेहनत करने वाले लोग कभी-कभार थोड़ा सा पी लेते हैं या कभी दवा के तौर पर अपनी पत्नी के लिए ले जाते हैं, लेकिन पुलिस सबसे पहले उसी गरीब को पकड़ती है। उन्होंने राज्य की स्थिति पर सवाल उठाते हुए कहा कि छह लाख शराबबंदी से जुड़े मामलों में से चार लाख गरीबों पर ही दर्ज हैं। यह बताता है कि पुलिस कार्रवाई का पूरा भार समाज के निचले तबके पर ही पड़ रहा है।

मांझी ने अपने गांव खिजरसराय का एक उदाहरण भी दिया। उन्होंने बताया कि उनका घर थाने के बिल्कुल पास है। जब कुछ दिन पहले वहां सफाई करवाई गई, तो 10 कंटेनर शराब मिली। उन्होंने पूछा कि क्या मुख्यमंत्री नीतीश कुमार इतने बड़े मामले में किसी को पकड़वाने जाएंगे? अगर पुलिस स्टेशन के पास यह हाल है, तो बाकी जगह की स्थिति का अंदाज़ा लगाना मुश्किल नहीं।

उन्होंने कहा कि शराब बनाने और बेचने वाले बड़े माफिया चुनाव लड़ने के लिए करोड़ों खर्च करते हैं और जीत भी जाते हैं। राजनीतिक संरक्षण मिलने की वजह से उन पर कोई कार्रवाई नहीं होती। उन्होंने यह भी स्पष्ट किया कि उनके माता-पिता भी महुआ और ईख की शराब बनाते थे, जो प्राकृतिक होती थी और बनाने में आठ दिन लगते थे। लेकिन माफिया सिर्फ दो घंटे में जहरीली शराब तैयार कर देते हैं, जिससे गरीब लोगों की सेहत खराब हो रही है।

समापन में मांझी ने "रामचरित मानस" की एक पंक्ति का हवाला देते हुए कहा कि सचिव, वैद्य और मित्र अगर गलत सलाह दें, तो राजा का पतन तय है। इसलिए, सरकार के मित्र होने के नाते वह यही सलाह देंगे कि कानून का क्रियान्वयन सही तरीके से हो और आदतन शराब न पीने वाले गरीब लोगों को बेवजह न पकड़ा जाए।