
Prabhat Vaibhav,Digital Desk : उत्तराखंड के पवित्र केदारनाथ मंदिर की दिव्यता और मौलिकता को लेकर अब एक नया विवाद खड़ा हो गया है। इटावा (उत्तर प्रदेश) में केदारनाथ मंदिर का एक प्रतिरूप (रेप्लिका) बनाए जाने की खबर से तीर्थ पुरोहितों में गहरा आक्रोश है। उन्होंने इसे आस्था का 'व्यापार' करार देते हुए इस पर तुरंत रोक लगाने की मांग की है।
तीर्थ पुरोहित समाज का साफ कहना है कि केदारनाथ मंदिर कोई आम इमारत नहीं, बल्कि स्वयं प्रकट ज्योतिर्लिंग है। यह भारत के चार धामों में से एक है और इसकी अपनी एक अनूठी पहचान और ऐतिहासिक-धार्मिक महत्व है। ऐसे में, किसी दूसरी जगह पर इसकी नकल बनाना न केवल करोड़ों श्रद्धालुओं की आस्था का अनादर है, बल्कि यह मूल मंदिर की प्रतिष्ठा को भी कम करता है।
पुरोहितों का तर्क है कि ऐसी प्रतिकृतियां बनाकर आस्था का सीधा व्यापार किया जा रहा है। उनका मानना है कि अगर ऐसे 'नकली' मंदिर बनने लगे, तो लोग असली केदारनाथ धाम की यात्रा पर कम जाएंगे, जिससे न केवल मूल मंदिर की महत्ता कम होगी, बल्कि स्थानीय तीर्थ पुरोहितों, छोटे दुकानदारों और यात्रा से जुड़े हजारों लोगों की रोजी-रोटी भी प्रभावित होगी।
रुद्रप्रयाग में हुई एक बैठक में तीर्थ पुरोहित समाज ने एकजुट होकर इस मुद्दे पर गहरी चिंता व्यक्त की है। उन्होंने राज्य सरकार और बद्रीनाथ-केदारनाथ मंदिर समिति से तुरंत इस मामले में हस्तक्षेप करने और ऐसी 'नकल' पर रोक लगाने की मांग की है। उनका कहना है कि केदारनाथ जैसे धार्मिक स्थलों की मौलिकता और पवित्रता को बनाए रखना बेहद जरूरी है।
यह विवाद सिर्फ एक भवन के निर्माण का नहीं, बल्कि सदियों पुरानी आस्था, एक अनूठी परंपरा और उत्तराखंड की पहचान पर सीधा हमला है। देखना होगा कि सरकार और मंदिर प्रशासन इस गंभीर मुद्दे पर क्या कदम उठाते हैं।