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Prabhat Vaibhav,Digital Desk : हिंदू विवाह में हर रस्म का अपना एक खास महत्व होता है। हल्दी, मेहंदी, बारात और सात फेरे जैसी रस्में निभाई जाती हैं। इन्हीं में से एक खास परंपरा है कि दुल्हन दूल्हे के बाईं ओर बैठती है। यह न केवल शादी के दिन, बल्कि उसके बाद की सभी शुभ रस्मों में भी देखा जाता है।

शास्त्रों में पत्नी को "वामागी" कहा गया है, जिसका अर्थ है पति के बाएँ भाग की स्वामी। ऐसा माना जाता है कि स्त्री का जन्म भगवान शिव के बाएँ भाग से हुआ है। यह शिव के अर्धनारीश्वर रूप का प्रतीक है, जहाँ आधा शरीर शिव का और आधा शक्ति का है। इसलिए, वधू को पति के बाएँ भाग में बिठाया जाता है।

ऐसा कहा जाता है कि पुरुष का हृदय उसके शरीर के बाईं ओर स्थित होता है। इसलिए, दुल्हन को पति के बाईं ओर बैठाया जाता है, जो इस बात का संकेत है कि वह हमेशा उसके हृदय में रहती है। यह मान्यता पति-पत्नी के रिश्ते में प्रेम और स्नेह बढ़ाती है। हिंदू धर्म में, बायाँ भाग और बायाँ हाथ प्रेम, कोमलता और समझ का प्रतीक माना जाता है। इसलिए, दुल्हन को बाईं ओर बिठाना इस बात का संकेत है कि विवाह के बाद पति-पत्नी के बीच प्रेम और सामंजस्य बना रहेगा।

एक अन्य मान्यता के अनुसार, देवी लक्ष्मी सदैव भगवान विष्णु के बाईं ओर विराजमान रहती हैं। विवाह में वर को भगवान विष्णु का रूप और वधू को लक्ष्मी का रूप माना जाता है। इसलिए वधू को बाईं ओर बिठाना घर में सुख-समृद्धि, धन-संपत्ति और सौभाग्य का शुभ संकेत माना जाता है।

इन्हीं मान्यताओं को ध्यान में रखते हुए, दुल्हन का बाईं ओर बैठना सिर्फ़ एक रस्म नहीं, बल्कि रिश्ते की गहराई का परिचायक है। यह दर्शाता है कि पत्नी, पति के जीवन में प्रेम, सम्मान और शुभता लाती है और यह एकता पूरे वैवाहिक जीवन में बनी रहती है।