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Prabhat Vaibhav,Digital Desk : बिहार में चुनावी माहौल अब पूरी तरह गर्म हो गया है। राजनीतिक समीकरण लगातार बन और बिगड़ रहे हैं। इसी बीच चर्चा है कि तेजस्वी यादव सिर्फ राघोपुर से ही नहीं, बल्कि भारत रत्न जननायक कर्पूरी ठाकुर की कर्मभूमि फुलपरास से भी चुनाव लड़ सकते हैं।

खबरें हैं कि फुलपरास सीट पर विशेष ध्यान दिया जा रहा है। कहा जा रहा है कि तेजस्वी यादव माय (MY) समीकरण के साथ-साथ अति पिछड़ा वोटरों पर भी दांव आज़माना चाहेंगे। इसमें उनके नए प्रदेश अध्यक्ष मंगनीलाल मंडल की भूमिका अहम हो सकती है।

फुलपरास में वर्तमान में जदयू की विधायक और मंत्री शीला मंडल हैं, जो धानुक समाज के मगहिया हिस्से से आती हैं। वहीं मंगनीलाल मंडल धानुक समाज के चिरौद हिस्से से हैं। ऐसे में अति पिछड़ा वोटर वर्ग में तेजस्वी यादव की पकड़ मजबूत हो सकती है। अगर यह दांव सफल हुआ, तो कांग्रेस को अपनी रणनीति बदलनी पड़ सकती है।

राजनीतिक जानकारों का मानना है कि तेजस्वी यादव फुलपरास से चुनाव लड़ते हैं, तो इसका असर दरभंगा और सुपौल तक की सीटों पर भी पड़ेगा। फुलपरास विधानसभा क्षेत्र में यादव उम्मीदवारों का लगातार दबदबा रहा है। 1990 से 2015 तक यहां यादव उम्मीदवार ही जीतते रहे, जिनमें देवनाथ यादव और उनकी पत्नी गुलजार देवी की जीत शामिल है।

इतिहास की बात करें तो यादव उम्मीदवारों ने कांग्रेस, जदयू और सपा को भी इस सीट पर मात दी है। 2020 में महागठबंधन ने कांग्रेस से ब्राह्मण उम्मीदवार कृपानाथ पाठक को उतारा, लेकिन अति पिछड़ा उम्मीदवार शीला मंडल से हार का सामना करना पड़ा। शीला मंडल ने पहली जीत में ही मंत्रीमंडल में जगह बनाई और पूरे पांच साल मंत्री रहीं।

फुलपरास में अति पिछड़ा, मुस्लिम और ब्राह्मण वोटर भी पर्याप्त संख्या में हैं। याद करने योग्य है कि 1977 के उपचुनाव में देवेंद्र प्रसाद यादव ने यह सीट छोड़ी थी, और उस समय मुख्यमंत्री रहते हुए जननायक कर्पूरी ठाकुर को जीत मिली थी। तब से यह सीट उनकी कर्मभूमि के रूप में देखी जाती है।

अगर तेजस्वी यादव फुलपरास से मैदान में उतरते हैं, तो यह सिर्फ एक सीट की लड़ाई नहीं होगी, बल्कि पूरे मिथिला क्षेत्र के राजनीतिक समीकरण बदल सकते हैं।