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Prabhat Vaibhav,Digital Desk : संगरूर में आम आदमी पार्टी की स्थिति धीरे-धीरे कमजोर होती जा रही है। नगर कौंसिल चुनाव में पार्टी बहुमत हासिल करने में असफल रही और महज पांच महीने बाद ही आठ पार्षदों ने पार्टी छोड़ दिया।

यह हालात तब हैं जब पंजाब में आप की सरकार है और हलका विधायक, नगर कौंसिल प्रधान समेत कई पदों पर पार्टी का कब्जा है।

कौंसिल में वरिष्ठ उपप्रधान और अन्य आठ पार्षदों द्वारा इस्तीफा देने के 24 घंटे बीतने के बाद भी पार्टी हाईकमान की तरफ से कोई प्रतिक्रिया नहीं आई है। फिलहाल पार्षदों के इस्तीफे पार्टी स्तर पर मंजूर नहीं हुए हैं।

इस बदलाव के बाद कौंसिल में आप फिर अल्पमत में पहुंच गई है। नगर कौंसिल प्रधान को हटाने के लिए सियासी कोशिशें हो रही हैं, लेकिन प्रधान की कुर्सी फिलहाल सुरक्षित है। कुर्सी बदलने के लिए कम से कम 21 पार्षदों का समर्थन जरूरी है।

पांच आजाद पार्षदों ने पहले थामा था आप का दामन

नगर कौंसिल चुनाव में आम आदमी पार्टी को सात, कांग्रेस को नौ, दस आजाद और भाजपा को तीन सीटें मिली थीं। चुनाव के बाद पांच आजाद पार्षदों ने आप का साथ दिया, जिससे पार्टी की संख्या 12 तक पहुंच गई।

दो विधायकों और दो आजाद पार्षदों के समर्थन से आम आदमी पार्टी ने 26 अप्रैल को भूपिंदर सिंह नहल को प्रधान घोषित किया।

प्रधान बदलने के लिए जरूरी है 21 पार्षदों की एकजुटता

नगर कौंसिल में कुल 29 पार्षद हैं और विधायक के वोट मिलाकर कुल मत 31 हैं। किसी भी प्रधान को हटाने के लिए कम से कम 21 पार्षदों का समर्थन आवश्यक है।

आम आदमी पार्टी के 12 में से आठ पार्षदों के इस्तीफा देने के बाद अब पार्टी के पास केवल चार पार्षद बचे हैं। वहीं, इन आठ पार्षदों के अलावा पांच आजाद पार्षदों ने भी पार्टी का साथ दिया, जिससे आजाद पार्षदों की संख्या 13 हो गई। कांग्रेस के पास नौ और भाजपा के पास तीन पार्षद हैं।

आजाद पार्षदों ने समर्थन वापस लिया

वार्ड नंबर-16 के पार्षद विजय लंकेश और वार्ड नंबर-27 की जसवीर कौर ने पहले नगर कौंसिल प्रधान के लिए समर्थन दिया था। लेकिन आठ पार्षदों के इस्तीफा देने के बाद उन्होंने भी अपना समर्थन वापस ले लिया।

उन्होंने कहा कि शहर के विकास के लिए उन्होंने समर्थन दिया था, लेकिन नगर कौंसिल के गठन के बाद भी विकास या समस्याओं के समाधान में कोई प्रगति नहीं हुई। इसलिए उन्होंने मजबूरन अपना समर्थन वापस लिया।

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