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Prabhat Vaibhav,Digital Desk : इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने फैसला सुनाया है कि यदि किसी महिला का पहला विवाह अभी तक भंग नहीं हुआ है, तो वह दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 125 के तहत अपने साथ रहने वाले पुरुष से भरण-पोषण का दावा नहीं कर सकती। महिला ने जिला न्यायालय के उस फैसले के खिलाफ उच्च न्यायालय में याचिका दायर की थी जिसमें उसे भरण-पोषण देने से इनकार कर दिया गया था।

उच्च न्यायालय ने कहा, "यदि विवाह हुआ भी है, तो वह अमान्य होगा क्योंकि याचिकाकर्ता का पिछला वैवाहिक संबंध अभी भी कायम है। इसलिए, वह दीर्घकालिक संबंध के आधार पर सीआरपीसी की धारा 125 के तहत भरण-पोषण का दावा नहीं कर सकती।"

अदालत ने क्या कहा?

न्यायमूर्ति मदन पाल सिंह की पीठ ने भरण-पोषण देने से इनकार करते हुए कहा, "यदि समाज में यह प्रथा स्वीकार कर ली जाती है कि एक महिला कानूनी रूप से एक व्यक्ति से शादी कर सकती है और दूसरे पुरुष के साथ रह सकती है और बाद में उससे भरण-पोषण प्राप्त कर सकती है, तो सीआरपीसी की धारा 125 का मूल उद्देश्य और विवाह संस्था की कानूनी और सामाजिक गरिमा कमजोर हो जाएगी।"

महिला के दावे का आधार क्या है?

पुनर्विचार याचिका को खारिज करते हुए न्यायालय ने कहा, "याचिकाकर्ता लगभग 10 वर्षों से प्रतिवादी के साथ रह रही है और यह संबंध विवाह जैसा प्रतीत होता है, लेकिन यह धारा 125 सीआरपीसी के तहत पत्नी का कानूनी दर्जा प्रदान नहीं करता है।"

महिला के वकील ने दावा किया कि आधार कार्ड और पासपोर्ट सहित आधिकारिक दस्तावेजों में उसका नाम उस व्यक्ति की पत्नी के रूप में दर्ज था और समाज में उसे उसके पति के रूप में स्वीकार किया जाता था।

दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 125 के तहत भरण-पोषण का दावा दायर किया गया

महिला ने बताया कि उस व्यक्ति और उसके बेटों ने उसके साथ क्रूरता और उत्पीड़न किया। उन्होंने उसे मार्च 2018 में घर से निकाल दिया और घर में प्रवेश करने से रोक दिया, जिसके कारण उसे धारा 125 सीआरपीसी के तहत भरण-पोषण के लिए आवेदन करना पड़ा। 8 दिसंबर को अपने फैसले में अदालत ने कहा कि महिला धारा 125 सीआरपीसी के तहत कानूनी रूप से विवाहित पत्नी के दायरे में नहीं आती है, इसलिए उसका भरण-पोषण आवेदन खारिज कर दिया गया।