गोण्डा।। श्रावण मास के पहले दिन जिले के चार प्रमुख शिव मंदिरों में पृथ्वीनाथ, दुखहरण नाथ, बालेश्वरनाथ और बरखंडी नाथ महादेव मंदिरों पर सुबह तड़के से जलाभिषेक करने के लिए शिव भक्तों का तांता लगा रहा। लोग भांग-धतूरा, बेलपत्र, अक्षत लेकर देवों के देव महादेव की पूजन-अर्चन करने के लिए आतुर दिखे।
मुख्यालय से 30 किलोमीटर दूर खरगूपुर कस्बे के निकट पृथ्वीनाथ मंदिर में भगवान शिव के साक्षात दर्शन होते हैं। पांडवों के अज्ञातवास के दौरान यहां भीम ने भगवान श्रीकृष्ण के निर्देश पर साढ़े पांच फुट ऊंचा एशिया महाद्वीप का सबसे विराटतम शिवलिंग का स्थापित किया था। प्राचीनतम समय में इस क्षेत्र में पांडव अपनी मां कुंती के साथ रहते थे। इस क्षेत्र के लोग ब्रह्म राक्षस से पीड़ित थे। भीम ने उसका वध कर दिया था। अभिशाप से मुक्ति पाने के लिए उन्होंने भगवान श्री कृष्ण के मार्गदर्शन के बाद भगवान शिव की उपासना के लिए इस विराटतम शिवलिंग की स्थापना की।
पुरातत्व विभाग की मानें तो एशिया महाद्वीप का सबसे बड़े शिवलिंगों में से एक है। जिसकी जमीन के अंदर 64 फीट गहराई, जबकि जमीन के ऊपर अरघे समेत साढ़े पांच फीट ऊंचा है। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार खरगूपुर के राजा गुमान सिंह के अनुमति से यहां के पृथ्वी सिंह ने मकान निर्माण के लिए खुदाई शुरू की, उसी रात स्वप्न में पता चला कि जमीन के नीचे सात खंडों में शिवलिंग है। स्वप्न के अनुसार उन्होंने इस मंदिर का निर्माण कराया तभी से इस मंदिर का नाम पृथ्वीनाथ मंदिर पड़ा। लाखों श्रद्धालुओं की आस्था का केंद्र होने के साथ ही पृथ्वीनाथ मंदिर वास्तुकला का अद्भुत नमूना है।
मंदिर के पुजारी जगदंबा प्रसाद तिवारी ने बताया कि वैसे यहां तो प्रतिदिन श्रद्धालुओं की भारी भीड़ जुटती है। यद्यपि श्रावणमास व हर तीसरे साल पड़ने वाले अधिमास में यहां लाखों श्रद्धालु जलाभिषेक करते हैं। महाशिवरात्रि पर्व व कजलीतीज के अवसर पर यहां की बेकाबू भीड़ को नियंत्रित करने के लिए प्रशासन को करीब पांच से छह किलोमीटर तक बैरिकेडिंग करनी पड़ती है।
बरखंडी नाथ महादेव मंदिर
कर्नलगंज नगर से मात्र तीन किलोमीटर दूर हुजूरपुर रोड पर स्थित पौराणिक बरखंडी नाथ महादेव मंदिर के शिवलिंग की गहराई का आज तक किसी को पता नहीं चला। बताया जाता है कि जब कर्नलगंज क्षेत्र पूरा भाग जंगल था। तब जंगल में चरवाहे अपनी जानवर को चराने आते थे। तथा मूंज को एकत्र कर उसे कूटते तथा रस्ती बनाते थे। एक दिन जिस पत्थर पर कूट रहे थे। अचानक खून निकलने लगा, इसकी जानकारी श्रावस्ती के राजा को हुई। वह अपने हाथी घोड़ों के साथ वहां पहुंचे तथा पत्थर को जंजीर से बांधकर हाथी से खींचने लगे। किंतु पत्थर को निकाल ना सके। जब खुदाई भी नाकाम रही और वह बीमार पड़ गए तब एक रात्रि स्वप्न देखा कि मंदिर बनवाने से ठीक हो सकते हैं।
उन्होंने मंदिर का निर्माण कराया तथा वहां पुजारी की नियुक्ति की। मंदिर नियमानुसार यहां का पुजारी जीवन भर अविवाहित रहेगा। प्रथम पुजारी की 32वीं पीढ़ी के महंत सुनील पुरी वर्तमान में इस मंदिर की देखरेख करते हैं।
बालेश्वर नाथ मंदिर
जनपद वजीरगंज क्षेत्र के ग्राम नगवा बल्हाराई में स्थित बालेश्वर नाथ मंदिर को लेकर धार्मिक ग्रंथ श्रीमद्भागवत में वर्णित है कि भगवान राम के पूर्वज राजा सुदुम्न द्वारा स्थापित बालेश्वर नाथ मंदिर की मान्यता है कि जंगल क्षेत्र होने के नाते यहां पर भगवान शिव और माता पार्वती भ्रमण किया करते थे। इसलिए यह क्षेत्र इंसानों के लिए वर्जित था। अवधारणा है कि राजा सुदुम्न शिकार के दौरान जंगल में प्रवेश कर गए। जिन्हें माता पार्वती ने स्त्री बन जाने का श्राप दिया। स्त्री बन जाने के बाद राजा दुविधा में पड़ गए। वह सोचने लगे कि वह अब अयोध्या किस प्रकार जाएंगे। उन्होंने भगवान शिव से अपनी गलती स्वीकार करते हुए क्षमा मांगी। भगवान शिव चाह कर भी श्राप वापस न ले सके। बशर्ते उन्होंने आशीर्वाद दिया कि छह महीने तक स्त्री व छह महीने तक पुरुष के रूप में रहोगे। इस तरह जब राजा पुरुष के वेशभूषा में होते थे, तो अयोध्या और जब स्त्री के वेशभूषा में होते थे, तब वह जंगल में भगवान शिव की आराधना करते थे। इनके द्वारा स्थापित शिव मंदिर आज बाबा बालेश्वर नाथ के नाम से जाना जाता है।
दुखहरण नाथ मंदिर
मुख्यालय के स्टेशन रोड स्थित बाबा दुखहरण नाथ मंदिर अति प्राचीनतम है। पांडवों द्वारा अज्ञातवास के दौरान यहां पर एक शिवलिंग की स्थापना की गई थी। बाद में इस मंदिर का निर्माण गोंडा नरेश ने करवाया। यह मंदिर पूरी तरह पत्थरों से बना भगवान शिव को समर्पित है।
मान्यता है कि यहां पर जलाभिषेक व पूजा अर्चना करने से श्रद्धालुओं के सारे कष्ट दूर हो जाते हैं। यहां पर पूरे वर्ष प्रत्येक शुक्रवार व सोमवार को श्रद्धालुओं की भीड़ जुटती है। सावन मास में सोमवार व शुक्रवार को शिव भक्तों की अपार भीड़ जलाभिषेक करती है। जिसके लिए प्रशासन को रूट डायवर्जन के साथ-साथ सुरक्षा के व्यापक इंतजाम करने पड़ते हैं। कजली तीज के अवसर पर कर्नलगंज स्थित पवित्र सरयू नदी से नंगे पैर लाखों की संख्या में शिवभक्त जलाभिषेक करते हैं। इस दौरान प्रशासन द्वारा करीब चार किलोमीटर तक जलाभिषेक के लिए वेरीकेटिंग की जाती है।