Prabhat Vaibhav,Digital Desk : छठ पूजा का महापर्व इस बार 25 अक्टूबर, शनिवार से शुरू हो रहा है। नहाय-खाय के साथ व्रत की शुरुआत होगी। रविवार, 26 अक्टूबर को व्रती खरना रखेंगे। सोमवार, 27 अक्टूबर को अस्ताचलगामी सूर्य को अर्घ्य दिया जाएगा और मंगलवार, 29 अक्टूबर को उदीयमान सूर्य को अर्घ्य देकर चार दिवसीय पर्व का समापन होगा।
तिलकामांझी महावीर मंदिर के पंडित आनंद झा के अनुसार, छठ व्रत में शुद्धता और सात्विकता की प्रधानता होती है। सूर्य देव की उपासना से शरीर और मन दोनों की शुद्धि होती है और मानसिक व शारीरिक कष्ट दूर होते हैं। नहाय-खाय से व्रती अपने शरीर, मन और आत्मा को पवित्र कर व्रत की शुरुआत करते हैं। इस दिन अरवा चावल, चने की दाल, सेंधा नमक और कद्दू की सब्जी का सेवन किया जाता है।
कद्दू को शुद्ध और सुपाच्य माना गया है, जो व्रती को ऊर्जा देता है। महिलाएं गंगा स्नान कर, लकड़ी के चूल्हे पर मिट्टी के बर्तनों में भोजन बनाती हैं ताकि भोजन में किसी प्रकार की अशुद्धि न रहे। शहर और गाँव दोनों ही जगह वातावरण पूरी तरह छठमय हो गया है।
शहर की गलियों में पारंपरिक छठ गीतों की गूँज सुनाई दे रही है जैसे:
- “कांची के बांस बंगही”
- “बंगही लचकत जाय”
- “चार हो कोना के पोखरिया”
- “जल उमड़ल जाय”
जहाँ छठ पर्व मनाया जा रहा है, वहाँ पूरा माहौल श्रद्धा और उल्लास से भरा है। महिलाएं गेहूं सुखाती हैं और गीतों की स्वर-लहरियाँ वातावरण को पवित्र बनाती हैं।
व्रती महिलाओं (परवैतीन) के घरों में देर रात तक छठ गीत गूंजते रहते हैं। गीतों में प्रार्थना और भक्ति का मिश्रण दिखाई देता है, जैसे:
- “पहिले पहिल छठी मइया”
- “उग हे सुरुज देव”
- “पटना के घाट पर, कांच ही बांस के बहंगिया”
- “रुनकी-झुनकी बेटी मांगीला”
सामान की खरीदारी से लेकर प्रसाद तैयार करने तक हर काम में सावधानी और शुद्धता बरती जाती है। कई श्रद्धालु अपने व्रत की कामना पूरी होने पर घर से घाट तक दंडवत करते हुए पहुंचते हैं। इस दृढ़ आस्था और अनुशासन ने छठ पूजा को केवल पर्व नहीं, बल्कि लोगों की आध्यात्मिक पहचान बना दिया है।




