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Prabhat Vaibhav,Digital Desk : पटना हाई कोर्ट ने अररिया जिले के एक हत्या मामले में बड़ा फैसला सुनाते हुए उम्रकैद की सजा काट रहे विजय कुमार यादव उर्फ विवेक उर्फ गोलू को बरी कर दिया है। अदालत ने कहा कि जिस आधार पर निचली अदालत ने दोषसिद्धि की थी, वह साक्ष्य कानून की कसौटी पर खरे नहीं उतरते। आरोपी सात साल से अधिक समय तक जेल में रह चुका था।

न्यायमूर्ति बिबेक चौधरी और न्यायमूर्ति डॉ. अंशुमान की खंडपीठ ने अररिया ट्रायल कोर्ट के 11 अप्रैल 2018 के दोषसिद्धि आदेश और 17 अप्रैल 2018 को सुनाई गई सजा को रद्द कर दिया। अदालत ने स्पष्ट किया कि पूरा मामला अवैध और अप्रमाणिक साक्ष्यों पर टिका हुआ था।

क्या था मामला

अभियोजन के अनुसार, 23 दिसंबर 2016 को एक अज्ञात शव बरामद हुआ था, जिसकी पहचान बाद में नियाज अहमद के रूप में की गई। पुलिस जांच में मृतक के एटीएम कार्ड से पैसे निकाले जाने, आभूषण खरीदे जाने और आरोपी की कथित स्वीकारोक्ति के आधार पर विजय कुमार यादव को हत्या और साक्ष्य छुपाने का दोषी ठहराया गया था।

हाई कोर्ट ने क्यों माना साक्ष्य कमजोर

हाई कोर्ट ने कहा कि ट्रायल कोर्ट ने पुलिस के सामने दी गई कथित स्वीकारोक्ति को साक्ष्य मान लिया, जबकि भारतीय साक्ष्य अधिनियम की धारा 25 और 26 के तहत पुलिस के समक्ष की गई स्वीकारोक्ति मान्य नहीं होती।

अदालत ने यह भी पाया कि कथित बरामदगी से जुड़े गवाहों ने अभियोजन पक्ष का समर्थन नहीं किया। इसके अलावा, एटीएम लेनदेन, कॉल डिटेल रिकॉर्ड और सीसीटीवी फुटेज जैसे इलेक्ट्रॉनिक साक्ष्य धारा 65-बी के प्रमाण-पत्र के बिना पेश किए गए, जिससे वे कानूनन अमान्य हो गए।

जांच में गंभीर खामियां

खंडपीठ ने यह भी टिप्पणी की कि मृतक के परिजनों द्वारा जिन अन्य लोगों पर संदेह जताया गया था, उनकी भूमिका की जांच ही नहीं की गई। इस तरह की अधूरी और एकतरफा जांच के आधार पर किसी को दोषी ठहराना न्यायसंगत नहीं माना जा सकता।

इन सभी तथ्यों को ध्यान में रखते हुए हाई कोर्ट ने अपील स्वीकार की और आरोपी को तत्काल रिहा करने का आदेश दिया।