इन दिनों नवरात्रि (Navratri) का पर्व चल रहा है। हिंदू धर्म में नवरात्रि का विशेष महत्व है। नवरात्रि के पूरे 9 दिनों तक मां दुर्गा के अलग-अलग स्वरूपों की आराधना की पूजा की जाती हैऔर व्रत रखा जाता है। धार्मिक मान्यता है कि मां दुर्गा शक्ति की प्रतीक हैं और वे अपने भक्तों के सभी समस्त दुखों को दूर करती हैं।
पंचाग में बताया गया है कि 2 अप्रैल से नवरात्रि (Navratri) शुरू हो चुका है जो 10 अप्रैल को समाप्त होगा। नवरात्रि के आखिरी दिन मां सिद्धिदात्री की आराधना की जाती है। इस दिन कन्या पूजन (Kanya Pujan) का भी विधान है। कन्या पूजन के दौरान ही बटुक महाराज की भी पूजा करने की परंपरा हैं। कौन हैं बटुक और क्यों की जाती है इनकी पूजा। आइए जानते हैं।
चैत्र नवरात्रि (Navratri) के अंतिम दिन मां सिद्धिदात्री की विधि-विधान से पूजा की जाती है। इसके साथ ही माता रानी का स्वरूप माने जाने वाली कन्याओं का पूजन (Kanya Pujan) किया जाता है। इन्हीं कन्याओं के साथ ही एक बालक भी पूजा जाता है। इस बालक को बटुक भैरव का प्रतीक माना जाता है। देवी मां की पूजा के बाद भैरव की पूजा अहम मानी जाती है।
भगवान श्री बटुक-भैरव बालक रूपी हैं। कहा जाता हैं कि भगवान भैरव के इस स्वरूप की पूजा लाभकारी और मनोकामनाओं को पूर्ण करने वाली होती है। इनकी पूजा में दैनिक नैवेद्य दिनों के अनुसार किया जाता है। बटुक की पूजा दक्षिण दिशा की तरफ मुख करके की जाती है। (Navratri)
साधक को बटुक की पूजा करते समय लाल या काले वस्त्र धारण करना चाहिए। इनकी पूजा में लगाए गए भोग को साधना के बाद थोड़ा सा प्रसाद के रूप में ग्रहण करें बाकी प्रसाद को कुत्तों को खिला दें।पूजा के दौरान निम्नलिखित मंत्रों का कम से कम 21 माला का जाप करें। (Kanya Pujan)
।।ॐ ह्रीं बटुकाय आपदुद्धारणाचतु य कुरु कुरु बटुकाय ह्रीं ॐ।।
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