Pitrapaksh Start : दिवंगत पूर्वजों की आत्मा की शांति के लिए किए जाते हैं श्राद्ध कर्म, इन दिनों कई नियमों का भी करना होता है पालन

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एक दिन पहले गुरुवार को बप्पा की प्रतिमाओं के विसर्जन के साथ ही गणेश उत्सव का समापन हो गया। आज से श्राद्ध पक्ष आरंभ हो गए हैं। इस बार श्राद्ध पक्ष 29 सितंबर से 14 अक्टूबर तक रहेंगे। पूरे साल में यह दिन अपने दिवंगत पूर्वजों के लिए माने जाते हैं। शास्त्रों में पितरों की आत्मा की शांति के लिए पितृ पक्ष का समय बहुत विशेष माना जाता है। 

पितृ पक्ष के इन (15,16 दिनों) में श्राद्ध कर्म होते हैं। पितृ पक्ष में पितरों को तृप्त करने के प्रयास किए जाते हैं। इसके लिए इन दिनों में तर्पण, पिंडदान और श्राद्ध करने की परंपरा है। बिहार के गया, प्रयागराज और हरिद्वार में श्राद्ध कर्म किए जाते हैं। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, पितृ पक्ष में किए गए इन कार्यों से पितृ दोष दूर होता है और परिवार में सुख-शांति और खुशहाली आती है। पितृ पक्ष में वंशज अपने पूर्वजों की आत्मा की शांति के लिए श्राद्ध कर्म करते हैं। पितृ पक्ष में अगर कोई जानवर या पक्षी आपके घर आए, तो उसे भोजन जरूर कराना चाहिए। 

पितृपक्ष में पितरों का श्राद्ध करने से उनकी कृपा प्राप्त होती है और हर प्रकार की बाधाओं से मुक्ति मिलती है। तर्पण करने के बाद पितरों से प्रार्थना करनी चाहिए, ताकि वे संतुष्ट हों और आपको आशीर्वाद दें। पितृपक्ष में श्रद्धा पूर्वक अपने पूर्वजों को जल देने का विधान है। मान्‍यता है कि पूर्वज इन रूप में आकाश लोक से पृथ्वी पर आपसे मिलने आते हैं। पितृ पक्ष में पत्तल पर भोजन करें और ब्राह्राणों को भी पत्तल में भोजन कराएं, तो यह फलदायी होता है।

श्राद्ध पक्ष में कई नियम भी बनाए गए हैं, शुभ कार्य वर्जित माने जाते हैं--

श्राद्ध पक्ष कई नियम भी बनाए गए हैं। जिन्हें हमें पालन करना होता है। जैसे इन दिनों प्याज, लहसुन, मांसाहारी भोजन, मांगलिक कार्य पितृपक्ष में निषेध माने गए हैं। ब्रह्मचर्य का पालन भी करना चाहिए। कोई भी शुभ काम इन 15 दिनों तक नहीं किया जाता है। जैसे ही नवरात्रि की शुरुआत होती है वैसे ही सारे मांगलिक कार्य शुरू हो जाते हैं। मान्यता है कि श्राद्ध पक्ष के दौरान हमारे पूर्वज पृथ्वी पर सूक्ष्म रूप में आते हैं और उनके नाम से किए जाने वाले तर्पण को स्वीकार करते हैं। इससे पितरों की आत्मा को शांति मिलती है और घर में सुख-शांति बनी रहती है। 

पितृ पक्ष भाद्रपद मास की पूर्णिमा से शुरू होते हैं और अश्विन मास की अमावस्‍या तक चलते हैं। इसे सर्व पितृ अमावस्‍या कहते हैं। पितृ पक्ष में हम अपने पितरों को नियमित रूप से जल अर्पित करें। यह जल दक्षिण दिशा की ओर मुंह करके दोपहर के समय दिया जाता है। जल में काला तिल मिलाया जाता है और हाथ में कुश रखा जाता है। जिस दिन पूर्वज की देहांत की तिथि होती है, उस दिन अन्न और वस्त्र का दान किया जाता है। उसी दिन किसी निर्धन को भोजन भी कराया जाता है। इसके बाद पितृपक्ष के कार्य समाप्त हो जाते हैं।

पितृपक्ष 2023 श्राद्ध की तिथियां इस प्रकार है--

पूर्णिमा का श्राद्ध - 29 सितंबर 2023 (शुक्रवार)
प्रतिपदा का श्राद्ध - 29 सितंबर 2023 (शुक्रवार)
द्वितीया का श्राद्ध - 30 सितंबर 2023 (शनिवार)
तृतीया का श्राद्ध - 1 अक्टूबर 2023 (रविवार)
चतुर्थी का श्राद्ध - 2 अक्टूबर 2023 (सोमवार)
पंचमी का श्राद्ध - 3 अक्टूबर 2023 (मंगलवार)
षष्ठी का श्राद्ध - 4 अक्टूबर 2023 (बुधवार)
सप्तमी का श्राद्ध - 5 अक्टूबर 2023 (गुरुवार)
अष्टमी का श्राद्ध - 6 अक्टूबर 2023 (शुक्रवार)
नवमी का श्राद्ध - 7 अक्टूबर 2023 (शनिवार)
दशमी का श्राद्ध - 8 अक्टूबर 2023 (रविवार)
एकादशी का श्राद्ध - 9 अक्टूबर 2023 (सोमवार)
मघा श्राद्ध - 10 अक्टूबर 2023 (मंगलवार)
द्वादशी का श्राद्ध - 11 अक्टूबर 2023 (बुधवार)
त्रयोदशी का श्राद्ध - 12 अक्टूबर 2023 (गुरुवार)
चतुर्दशी का श्राद्ध - 13 अक्टूबर 2023 (शुक्रवार)
सर्वपितृ मोक्ष अमावस्या - 14 अक्टूबर 2023 (शनिवार)

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