धर्म डेस्क। कुछ ही समय पहले लखनऊ समेत देश के ज्यादातर मंदिरों में मध्य में बड़े आकार की सांई बाबा की मूर्तियां दिखती थी। बृहस्पति के दिन मंदिरों में सांई भक्तों की भीड़ होती थी। शहरों में बड़े बड़े सांई मंदिर बन गए थे। जगह जगह सांई पालकी यात्रा नजर आती थी। आज हालात बदल चुके हैं। सांई भक्तों की तादाद अचानक घट गयी। इस समय धर्म नगरी काशी समेत देश भर के मंदिरों से सांई की मूर्तियां हटाई जा रहीं हैं। साईं बाबा के हिंदू या मुस्लिम होने पर भी हमेशा विवाद रहा है। इन स्थितियों में सांई बाबा के बारे में यहां पर कुछ जानकारियां देना समीचीन लगता है।
उल्लेखनीय है कि शिरडी वाले साईं बाबा के भक्त भारत समेत प्यूरी दुनिया में फैले हुए हैं। महाराष्ट्र के शिरडी में सांई बाबा का बड़ा मंदिर है। इस मंदिर में नित्य बड़ी संख्या में श्रद्धालु पहुंचते हैं। इसी तरह लखनऊ और दिल्ली समेत देश के तमाम हिंदू मंदिरों में भी साईं बाबा की मूर्तियां स्थापित हैं। शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती ने उसी समय साईं पूजा का विरोध किया था। स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती ने कहा था कि साईं बाबा की महात्मा के रूप में पूजा की जा सकती है, परमात्मा के रूप में नहीं।
अब एक बार फिर हिन्दू मंदिरों में सांई बाबा की मूर्तियों और उनकी पूजा को लेकर विवाद छिड़ गया है। काशी के मंदिरों से साईं बाबा की मूर्तियां हटाई जा रही हैं। सनातन रक्षक दल नामक संगठन मंदिरों से साईं बाबा की मूर्ति पर कपडे में लपेटकर हटाया जा रहा है। सनातन रक्षक दल का तर्क है कि शास्त्रों के अनुसार किसी भी देवालय या मंदिर में मृत मनुष्यों की मूर्ति स्थापित करके पूजा करना धर्म विरुद्ध है। सनातन धर्म के मंदिरों में केवल पंच देवों- सूर्य, विष्णु, शिव, शक्ति और गणपति के स्वरूपों की मूर्तियां स्थापित कर उनकी पूजा की जा सकती हैं।
अहम बात यह है कि साईं बाबा के हिंदू या मुस्लिम होने पर भी हमेशा विवाद रहा है। साईं बाबा का जन्म कब और कहां हुआ था, उनके माता-पिता कौन थे ? इस बारे में कुछ भी पता नहीं है। साईं बाबा के असली नाम को लेकर विवाद रहा है। कहीं उनका नाम चांद मियां बताया जाता है, तो कुछ लोग उन्हें हिंदू मानते थे। साईं बाबा ने कभी अपने बारे में कोई जानकारी ही नहीं दी। कहा जाता है कि एक बार एक भक्त के निवेदन पर सांई बाबा ने बताया था कि उनका जन्म 28 सितंबर 1836 को हुआ था। तभी से हर साल 28 सितंबर को साईं बाबा का जन्मोत्सव मनाया जाता है।
जानी के अनुसार साईं बाबा ने अपने जीवन का ज्यादातर समय एक पुरानी मस्जिद में बिताया था। इस मस्जिद को बाबा द्वारका माई कहते थे। द्वारिका के प्रति प्रेम और श्रद्धा के कारण ही उन्हें हिंदू माना जाने लगा। हालांकि वेशभूषा से साईं बाबा को लोग मुस्लिम समझते थे। कुछ लोग साईं बाबा को एक फकीर मानते हैं, जो ज्यादातर समय समाधि में लीन रहते थे और मांगकर अपना पेट भरते थे। कुछ समय बाबा ने अपने चमत्कार दिखाए तो तमाम लोग उन्हें भगवान का अंश मानने लगे। कुछ लोग साईं बाबा को भगवान दत्तादत्तात्रेय तो कुछ लोग भगवान शिव का अवतार मानने लगे।