
उत्तराखंड (Uttarakhand) में विधानसभा चुनाव को लेकर समाजवादी पार्टी ने कमर कस ली है इस बार सपा का पूरा प्रयास राज्य में अपना वोट प्रतिशत बढ़ाने पर रहेगा। आप को बता दे अभी तक सपा किसी भी विधानसभा चुनाव में कोई सीट हासिल नहीं कर पाई है। इसलिए समाजवादी पार्टी इस बार स्थानीय चुनावी मुद्दे बनाने जा रही है। सपा पार्टी ने क्षेत्रीय पार्टियों के साथ गठबंधन की ओर कदम बढ़ा रही है।
समाजवादी पार्टी उत्तराखंड (Uttarakhand) में राजनीतिक धरातल नहीं तलाश पाई है। जिसमें कई आंदोलनकारियों ने अपनी जान गंवाई थी। यही कारण रहा कि वर्ष 2004 के लोकसभा चुनाव में हरिद्वार संसदीय सीट पर जीत को अपवाद माना जाए तो शेष चुनावों में सपा का सूपड़ा साफ हुआ। यह पहला और आखिरी चुनाव रहा, जिसमें समाजवादी पार्टी ने उत्तर प्रदेश से अलग होने के बाद उत्तराखंड में जीत दर्ज की। यह बात अलग है कि राज्य गठन और उत्तराखंड आंदोलन से पहले उत्तराखंड क्षेत्र से कई विधायक सपा के टिकट पर उत्तर प्रदेश विधानसभा तक पहुंचे थे। इनमें मुन्ना सिंह चौहान, मंत्री प्रसाद नैथानी, अंबरीश कुमार और बर्फीयालाल जुवांठा के नाम नाम शामिल हैं।
Uttarakhand राज्य गठन के बाद 2002 के पहले विधानसभा चुनाव में समाजवादी पार्टी को 7.89 फीसदी के करीब वोट मिले थे। इन चुनाव में सपा ने 56 सीटों पर चुनाव लड़ा। आगामी चुनावों को देखते हुए सपा ने इस बार रणनीति बदली है और वह समान विचारधारा वाले क्षेत्रीय दलों से गठबंधन कर सभी सीटों पर चुनाव लड़ने की तैयारी में है। सपा के प्रदेश अध्यक्ष एसएन सचान का कहना है कि पार्टी ने इस बार विधानसभा चुनाव के लिए रणनीति में बदलाव किया है। इस बार राज्य के मूल मुद्दों यानी जल, जंगल, जमीन व पलायन के साथ ही मंडल आयोग की संस्तुतियों के अनुसार गरीब सवर्णों को साक्षरता के हिसाब से 27 प्रतिशत आरक्षण पार्टी के मुख्य मुद्दे होंगे।
Uttarakhand Election: कांग्रेस जिताऊ पर खेलेगी दांव, टिकट चयन और आवेदन का फार्मूला तय